आचार्य मम्मट : व्यंजना व्यापार की अपरिहार्यता

Authors(1) :-डाॅ. राजेश सरकार

ध्वनि के आधारभूत व्यंग्य अर्थ की सिद्धि व्यंजना शक्ति पर निर्भर है। अतः व्यंजना शक्ति की स्वतन्त्र रूप से मान्यता का प्रतिष्ठापन "वाग्देवतावतार’ आचार्य मम्मट का विशेष अध्यवसाय रहा है। मम्मट के अनुसार व्यंजना शब्द-शक्ति ही है, फिर भी जिस काव्य में शब्द-प्रमाण से संवेद्य कोई अर्थ पुनः किसी अर्थ को व्यंजित करता हैं, वही अर्थ व्यंजक हो जाता है और शब्द सहायक मात्र रहता हैं।1 इसी को और स्पष्ट करते हुए काव्यप्रकाश के तृतीय उल्लास में "नहि प्रमाणान्तरवेद्योऽर्थो व्यजकः"2 से मम्मट का आशय यह है कि प्रमाणान्तर से अप्राप्त, किन्तु शब्द-प्रमाण से प्राप्त उस अर्थ के प्रति किया गया व्यापार व्यंजना हैं, जो शब्द की अभिधा लक्षणा एवं तात्पर्यवृत्ति से उपलब्ध न हुआ हो। यह व्यंङ्य अर्थ अर्थात व्यंजना व्यापार भारतीय काव्यशास्त्र की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि एवं कसौटी है।

Authors and Affiliations

डाॅ. राजेश सरकार
एसोसियेट प्रोफेसर, संस्कृत विभाग, कला संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत

Publication Details

Published in : Volume 1 | Issue 1 | November-December 2018
Date of Publication : 2018-12-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 10-15
Manuscript Number : GISRRJ181103
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

डाॅ. राजेश सरकार, "आचार्य मम्मट : व्यंजना व्यापार की अपरिहार्यता ", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 1, Issue 1, pp.10-15, November-December.2018
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ181103

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