विकास की राह पर जनजातीय कोल: सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक परिवर्तन

Authors(1) :-Dr. Jai Shankar Prasad Singh

संस्कृत महाकवि माघ की यह पंक्ति इसी ओर संकेत करती है, कि परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत एवं अटल नियम है। पृथ्वी के भौतिक भू-दृश्यों में भी परिवर्तन घटित होते रहते हैं। चूँकि मानव एक ऐसा सजीव तत्व है, जो धरातल पर दूर-दूर तक परिवर्तन करता रहता है। मानव द्वारा निर्मित सांस्कृतिक भूदृश्य; परिवर्तन का एक अच्छा उदाहरण है। मानवीय समाज एवं प्राकृतिक जीवन्तता का राज़ भी परिवर्तन है। वर्तमान समय में जहाँ एक ओर हमारा देश तकनीकी स्तर पर, प्रौद्योगिकी एवं औद्योगिक विकास में विश्व के अन्य देशों की तुलना में बराबरी कर रहा है, वहीं दूसरी ओर देश के बहुत से ऐसे भू-भाग हैं, जिनमें निवास करने वाली जनजातियों में भी सांस्कृतिक एवं सामाजिक परिवर्तन हो रहें हैं। समकालीन समय में मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, स्टार्ट अप, स्टैण्ड अप, डिजिटल इंडिया हो अथवा कौशल विकास की अवधारणा सभी के माध्यम से विकास के सोपानों पर परिवर्तन की आहट को महसूस की जा सकती है। आज के विकसित साधन (अभिगभ्यता एवं संचार, टलीफोन एवं मोबाइल, कम्प्यूटर, इण्टरनेट आदि) व्यापार एवं वाणिज्य, उद्योग, सघन कृषि तथा खनन कार्य की रीति आदि ने जनजातीय प्रवृत्तियों के परिवर्तन पर प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से प्रभाव डाला है।

Authors and Affiliations

Dr. Jai Shankar Prasad Singh
Department of Geography, Associate Prof. and Head, V. K. S. U. Ara, Bihar, India

Publication Details

Published in : Volume 1 | Issue 1 | November-December 2018
Date of Publication : 2018-12-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 19-24
Manuscript Number : GISRRJ181105
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

Dr. Jai Shankar Prasad Singh, "विकास की राह पर जनजातीय कोल: सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक परिवर्तन", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 1, Issue 1, pp.19-24, November-December.2018
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ181105

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