गुरुनानक के धर्मदर्शन में भक्तिमार्ग : एक चिन्तन

Authors(1) :-प्रतिमा शाही

श्रीगुरुनानक देव का भारतीय धर्म संस्थापकों एवं समाज सुधारकों में गौरवपूर्ण स्थान है। मध्ययुग के संत कवियों में उनकी विशिष्ट और निराली धर्म परम्परा है। वह उस धर्म के संस्थापक है जिसके आन्तरिक पक्ष में विवेक,वैराग्य, भक्ति, ज्ञान, योग, तितिक्षा और आत्म समर्पण की भावना निहित है और बाह्य पक्ष में सदाचार, संयम, एकता, भ्रातृभाव आदि पिरोए हुए है। गुरु नानक मध्ययुग के मौलिक चिन्तक, क्रान्तिकारी सुधारक, युग निर्माता, महान् देशभक्त, दीन दुखियों के परम हितैषी तथा दूरदर्शी राष्ट्र निर्माता थे। उनके व्यक्तित्व की पूर्ण महत्ता समझने के लिए उस युग की राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक परिस्थितियों पर एक विहंगम दृष्टि डाल देना समीचीन प्रतीत होता है। उस समय अधिकांश भारत पर शासन-सूत्र मुसलमानों के हाथें में था। सामान्यतया दिल्ली का सुल्तान भारत का सम्राट समझा जाता था परन्तु वास्तविक स्थिति यह थी कि प्रान्तों का शासन मुसलमान गर्वनारों (सूबेदारों) के अधीन था। ये गर्वनर अपने को स्वतंत्र समझते थे। इससे स्वेच्छाचार का बोलबाला था। वे शासन में मनमाना अत्याचार बरतते थे। उदार से उदार मुसलमान शासक में धर्मान्धता कूट-कूट कर भरी थी। ‘तारीख-ए-दाउदी‘ के लेखक सिकन्दर लोदी की प्रशंसा मुक्तकण्ठ से की है, ‘‘सुल्तान सिकन्दर अत्यन्त यशस्वी शासक था। उसका स्वभाव अत्यन्त उदार था। वह अपनी उदारता, कीर्ति और नम्रता के लिए प्रसिद्ध था।उसे तड़क-भड़क बनाव-श्रृंगार में कोई रुचि नही थी।‘‘ किन्तु श्री बनर्जी के अनुसार सिकन्दर की यह न्यायप्रियता और उदारता संकिर्णता से युक्त थी। उसकी यह न्यायप्रियता और उदारता अपने सहधर्मियों तक ही सीमित थी।1 भाई गुरुदास ने भी इस बात का संकेत किया है कि काजियों में रिश्वत का बोलबाला था।

Authors and Affiliations

प्रतिमा शाही
शोधार्थी, दर्शनशास्त्र विभाग, दीदउगोविवि, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

Publication Details

Published in : Volume 1 | Issue 1 | November-December 2018
Date of Publication : 2018-12-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 01-04
Manuscript Number : GISRRJ181101
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

प्रतिमा शाही, "गुरुनानक के धर्मदर्शन में भक्तिमार्ग : एक चिन्तन", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 1, Issue 1, pp.01-04, November-December.2018
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ181101

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