श्रीमद्भगवद्गीता में प्रतिपादित कर्म अकर्म विवेचन

Authors(1) :-मंजीत कुमार वर्मा

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में जैसा बतलाया है उसके अनुसार कर्म करना संभव है तथा आवश्यक भी है। इसके विपरीत कर्मोें को विकर्म कहते हैं इसी तरह कर्म न करना अकर्म कहलाता है। इन कर्मों को करने से क्या होता है क्या नहीं होता है यह बात शास्त्र के द्वारा ही समझना संभव है। कर्म के स्पष्ट दिखाई देने वाले लौकिक परिणम चित्तशुद्वि और इसी तरह पुण्य आदि अलौकिक परिणाम में फर्क है। अतः कर्म की गति गहन (गूढ़) है। किया जाने वाला कर्म यदि निष्काम बुद्वि से किया जाए तो उसका जीव को बन्धन नहीं होता है। अतः ऐसे कर्म करने पश्चात् भी न करने के समान होता है।

Authors and Affiliations

मंजीत कुमार वर्मा
शोधार्थी, बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाॅसी, उत्तर प्रदेश, भारत।

श्रीकृष्ण, श्रीमद्भगवद्गीता, कर्म, अकर्म, अर्जुन।

  1. श्रीमद्भगवद्गीता जयदयाल गोयन्दका गीता प्रेस गोरखपुर
  2. संसारसागर का गीतादीपस्तंभ डा0 श्रीकृष्ण द0 देशमुख चैखम्भा संस्कृत भवन वाराणसी
  3. यथार्थगीता श्री परमहंस स्वामी अड़गड़ानन्द जी आश्रम ट्रस्ट
  4. श्रीमदभगवदगीता श्रीमच्छाड.करभाष्याऽऽनन्दागिरिव्याख्यायुता आचार्य केशवलाल वि0 शास्त्री चैखम्भा संस्कृत प्रतिष्ठान दिल्ली

Publication Details

Published in : Volume 4 | Issue 1 | January-February 2021
Date of Publication : 2021-02-28
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 58-60
Manuscript Number : GISRRJ120339
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

मंजीत कुमार वर्मा, "श्रीमद्भगवद्गीता में प्रतिपादित कर्म अकर्म विवेचन", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 4, Issue 1, pp.58-60, January-February.2021
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ120339

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