श्रीमद्भगवद्गीता में समत्वयोग

Authors(2) :-डाॅ0 बी0बी0 त्रिपाठी, मंजीत कुमार वर्मा

समत्वरूप योग की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए। क्योंकि योग ही तो कर्माें में कुशलता है। स्वधर्मरूप कर्म में लगे हुए मनुष्य का जो सिद्धि-असिद्धि में समत्व है, ईश्वरार्पित चित्त है, वही कुशलता है। स्वभाव से ही बन्धन करने वाले जो कर्म है, वे भी समत्वबुद्धि के प्रभाव से अपने स्वभाव का त्याग कर देते है। अतः समत्व बुद्धियुक्त रहना एक सच्ची साधना है।

Authors and Affiliations

डाॅ0 बी0बी0 त्रिपाठी
शोध पर्यवेक्षक, एसोसिएट प्रोफेसर, राजकीय महिला महाविद्यालय, झाॅसी, उत्तर प्रदेश, भारत।
मंजीत कुमार वर्मा
शोधार्थी, नेहरू महाविद्यालय ललितपुर, संबद्ध-बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय झाॅसी, उत्तर प्रदेश, भारत।

श्रीमद्भगवद्गीता, समत्वयोग, कर्म, स्वधर्म, मनुष्य, बुद्धियोग, संन्यासयोग, ध्यानयोग, योगशास्त्र।

  1. योगदर्शन (पातंजल दर्शन) सर्वदर्शनसंग्रह प्रकाशन चैखम्भा विद्याभवन चैक वाराणसी 2019
  2. श्रीमद्भगवद्गीता श्रीमच्छांकरभाष्याऽऽनन्दगिरिव्याख्यायुता हिन्दी अनुवाद सहिता प्रकाशन-चैखम्बा संस्कृत प्रतिष्ठान जवाहर नगर दिल्ली 2017
  3. श्रीमद्भगवद्गीता जयदयाल गोयन्दका प्रकाशक- गीता प्रेस गोरखपुर 2016
  4. संसार सागर का गीतादीपस्तंभ डा0 श्रीकृष्ण द0 देशमुख चैखम्भा संस्कृत भवन वाराणसी 2018
  5. यथार्थगीता श्री परमहंस स्वामी अड़गड़ानन्द जी आश्रम टस्ट 2018
  6. श्रीमद्भगवद्गीता श्रीमधुसूदन सरस्वतीकृत ‘गूढार्थदीपिका’ संस्कृत टीकायुत हिन्दी व्याख्या विभूषिता प्रकाशक- चैखम्भा संस्कृत भवन 2013

Publication Details

Published in : Volume 5 | Issue 2 | March-April 2022
Date of Publication : 2022-04-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 27-29
Manuscript Number : GISRRJ122523
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

डाॅ0 बी0बी0 त्रिपाठी, मंजीत कुमार वर्मा , "श्रीमद्भगवद्गीता में समत्वयोग", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 5, Issue 2, pp.27-29, March-April.2022
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ122523

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