Manuscript Number : GISRRJ122523
श्रीमद्भगवद्गीता में समत्वयोग
Authors(2) :-डाॅ0 बी0बी0 त्रिपाठी, मंजीत कुमार वर्मा
समत्वरूप योग की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए। क्योंकि योग ही तो कर्माें में कुशलता है। स्वधर्मरूप कर्म में लगे हुए मनुष्य का जो सिद्धि-असिद्धि में समत्व है, ईश्वरार्पित चित्त है, वही कुशलता है। स्वभाव से ही बन्धन करने वाले जो कर्म है, वे भी समत्वबुद्धि के प्रभाव से अपने स्वभाव का त्याग कर देते है। अतः समत्व बुद्धियुक्त रहना एक सच्ची साधना है।
डाॅ0 बी0बी0 त्रिपाठी श्रीमद्भगवद्गीता, समत्वयोग, कर्म, स्वधर्म, मनुष्य, बुद्धियोग, संन्यासयोग, ध्यानयोग, योगशास्त्र। Publication Details Published in : Volume 5 | Issue 2 | March-April 2022 Article Preview
शोध पर्यवेक्षक, एसोसिएट प्रोफेसर, राजकीय महिला महाविद्यालय, झाॅसी, उत्तर प्रदेश, भारत।
मंजीत कुमार वर्मा
शोधार्थी, नेहरू महाविद्यालय ललितपुर, संबद्ध-बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय झाॅसी, उत्तर प्रदेश, भारत।
Date of Publication : 2022-04-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 27-29
Manuscript Number : GISRRJ122523
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ122523