Manuscript Number : GISRRJ124716
हिन्दी वर्णमाला के उद्भव में पाणिनीय प्रभाव
Authors(1) :-डॉ. लेखराम दन्नाना समाज, संस्कृति एवं साहित्य की परिपोषक जो भाषाएँ हैं, भारत उन भाषाओं का भण्डार है। भारत में अनेक भाषाएँ हैं, जिनको हम भारतीय भाषा की संज्ञा देते हैं, अतः भारत एक बहुभाषी देश है । पाश्चात्य विद्वानों ने इसे भाषा परीक्षण की प्रयोगशाला तक कहा है । जहाँ उत्तर की ओर हिन्दी, उर्दु, पंजाबी, कश्मीरी इत्यादि भाषाओं का प्रयोग होता है , वहीं दक्षिण की ओर द्रविड़ परिवार की तमिल, तेलुगु, कन्नड, मलयालम आदि भाषाओं का प्रयोग होता है । ऐसे ही पश्चिम पूर्व और मध्य देश में विभिन्न भाषाओं एवं विभाषाओं का प्रयोग दिखाई देता है । जैसे- गुजराती, मराठी, बंगला, असमिया, उडिया, मणिपुरी इत्यादि। भारत जो भाषा प्रयोगशाला के रूप में जाना जाता है, उस भाषा प्रयोगशाला का आधार संस्कृत भाषा है । संस्कृत भाषा एक विशिष्ट भाषा है, जिसने भारत को स्वर्णिम चिड़िया की संज्ञा दिलायी है । जिसने संस्कृति को जीवित रखा है, जिसने साहित्य को मूर्धन्य स्थान दिया है, साहित्य को उस शिखर तक पहुँचाया है जिस शिखर से सभी ज्ञान अर्जित कर लाभान्वित हो रहे हैं । संस्कृत का व्याकरणिक पक्ष सुदृढ़ है जिससे अन्य भाषाओं के व्याकरण को भी सुदृढ़ता मिलती है । संस्कृत व्याकरण से प्रायः प्रत्येक भारतीय एवं वैदेशिक भाषाएं प्रभावित हुई हैं । भारतीय भाषाओँ में हिंदी के ऊपर विशेष रूप से प्रभाव परिलक्षित होता है । हिंदी के प्रत्येक व्याकरणिक तत्त्व पर पाणिनीय व्याकरण का प्रभाव दिखाई पड़ता है । पाणिनीय व्याकरण का हिंदी वर्णमाला पर जो विशिष्ट प्रभाव है, वह इस आलेख में प्रस्तुत है ।
डॉ. लेखराम दन्नाना व्याकरण, सूत्र, वर्णमाला, स्थान, प्रयत्न, मात्रा ।
Publication Details Published in : Volume 7 | Issue 1 | January-February 2024 Article Preview
सहायक आचार्य, संस्कृत विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश, भारत।
Date of Publication : 2024-01-15
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 51-57
Manuscript Number : GISRRJ124716
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ124716