Manuscript Number : GISRRJ124720
आचार्य कुन्दकुन्द देव के काल-विषयक समीक्ष्य-बिन्दु
Authors(1) :-प्रो. सुदीप कुमार जैन जैन-आगमिक-वाङ्मय के मूर्धन्य-मनीषी एवं साहित्यकार आचार्य कुन्दकुन्द देव के काल-विषयक-निर्धारण में उनके द्वारा प्रस्तुत कतिपय ऐसे तथ्य हैं, जो अति-उत्साहित-जनों को अपनी गवेषी-मानसिकता के पोषणार्थ कई आधार-बिन्दु प्रदान कर देते हैं। इनके आधार पर वे अति-उत्साही-विद्वान् प्राचीन मनीषियों एवं साहित्यकारों के काल-निर्धारण के मानदंडों एवं पद्धतियों की उपेक्षा करते हुये छोटे-मोटे कथनों को ही अंतिम-प्रमाण के रूप में मानकर उनके आधार पर अपनी निष्पत्ति कर देते हैं और "यही अंतिम-सत्य है" --ऐसी निर्णीति प्रस्तुत करते हुये अन्य ज्वलन्त-साक्ष्यों की उपेक्षा करने के लिये तत्पर हो जाते हैं, जो कि न केवल वास्तविक होते हैं, बल्कि उनकी उपेक्षा से सारी परम्परा का ऐतिह्य ही संकटास्पद हो जाता है। आचार्य कुन्दकुन्द ने अपने ग्रन्थों की जिनाम्नाय की दृष्टि से मूलानुगामिता एवं प्रामाणिकता ज्ञापित करने की दृष्टि से 'अंतिम-श्रुतकेवली आचार्य भद्रबाहु स्वामी को अपना 'गमकगुरु' क्या लिख दिया, इन लेखकों ने उन्हें आचार्य कुन्दकुन्द के दीक्षा-गुरु के रूप में निर्णीत करते हुये आचार्य कुन्दकुन्द को अंतिम-श्रुतकेवली आचार्य भद्रबाहु स्वामी का समकालीन या किंचित्-उत्तरवर्ती मान लिया है और जोर-शोर से इस बात का धुँआधार-प्रचार प्रारम्भ कर दिया है।-- यह इसलिये भी चिंता का विषय है कि आचार्य कुन्दकुन्द जिस नंदिसंघ के आचार्य थे, उस नंदिसंघ की स्थापना ही विक्रम की प्रथम-शताब्दी में हुई थी, जबकि अंतिम-श्रुतकेवली आचार्य श्री भद्रबाहु स्वामी सम्राट् चन्द्रगुप्त मौर्य के धर्मगुरु के रूप में स्थापित हैं और उनका काल लगभग पाँचवीं शताब्दी ईसापूर्व की उपान्त्य-बेला में प्रमाणित है। तब दोनों के कालों में लगभग 400 वर्षों से अधिक का अन्तर आ जाता है। इतिहास के क्षेत्र में यह बहुत-बड़ा अन्तर है और इससे अनेकों पूर्वापर-घटनाक्रमों के काल-विषयक-निर्धारण में सब कुछ डाँवाडोल हो जायेगा। अतः ऐतिहासिक साक्ष्यों की तथ्यात्मकरूप से प्रस्तुति के साथ-साथ काल-निर्धारण के स्थापित-मानदण्डों को आधार बनाकर इस आलेख में आचार्य कुन्दकुन्द का काल-निर्धारण की समीक्षा की गयी है।
प्रो. सुदीप कुमार जैन जैन-आगमिक-वाङ्मय, कुन्दकुन्द देव, अंतिम-सत्य, उपान्त्य-बेला। Publication Details Published in : Volume 7 | Issue 1 | January-February 2024 Article Preview
आचार्य, एवं विभागाध्यक्ष, प्राकृतभाषा-विभाग, श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विश्वविद्यालय
(केन्द्रीय विश्वविद्यालय) नई दिल्ली
Date of Publication : 2024-01-15
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 81-89
Manuscript Number : GISRRJ124720
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ124720