Manuscript Number : GISRRJ181129
संस्कृत वाङ्मय और ज्योतिष
Authors(1) :-डॉ.अभिषेक दत्त त्रिपाठी संस्कृत वाङ्मय और ज्योतिष का संबंध अत्यंत प्रगाढ़ और अटूट है। ज्योतिष वेद के अंगों में एक अभिन्न अंग है, जिस प्रकार वेदांगों में शिक्षा, कल्प, निरुक्त, छंद, और व्याकरण का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है, उसी प्रकार ज्योतिष भी वेदांगों में मुख्य स्थान रखता है। यदि किसी व्यक्ति के नेत्र ही ना हो, व्यक्ति अंधा हो, तो उसके लिए संपूर्ण संसार अंधकारमय हो जाता है जीवन के रस, रंग से वह विहीन व्यक्ति मृत्यु तुल्य कष्ट पाता है, जिस प्रकार एक व्यक्ति के जीवन में नेत्रों का जो महत्व है वही महत्व वेदांगों में ज्योतिष का है, इसी से समझा जा सकता है कि ज्योतिष शास्त्र कितना महत्वपूर्ण है। वैसे तो ज्योतिष शास्त्र को समझने के लिए दिन, महीने, वर्ष भी पर्याप्त नहीं है, क्योंकि ज्योतिष एक महाविज्ञान है, इसका प्रतिदिन अध्ययन करते रहने से ही इसको समझा जा सकता है। फिर भी मैंने एक छोटा सा प्रयास अपने इस शोधपत्र के माध्यम से किया है कि ज्योतिष शास्त्र कि कुछ तथ्य सुधिजनों के सम्मुख लाए जा सकें।
डॉ.अभिषेक दत्त त्रिपाठी करण, वार, पंचांग, कुंडली, नक्षत्र, तिथि, मुहूर्त, भाव। Publication Details Published in : Volume 1 | Issue 1 | November-December 2018 Article Preview
एसोसिएट प्रोफेसर, संस्कृत विभाग,
का0 सु0 साकेत स्नातकोत्तर महाविद्यालय अयोध्या, उत्तर प्रदेश, भारत।
Date of Publication : 2018-12-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 154-157
Manuscript Number : GISRRJ181129
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ181129