लखीमपुर-खीरी जनपद की थारु जनजाति का सामाजिक व सांस्कृतिक अध्ययन

Authors(1) :-डा0 नूतन सिंह

अपनी विरासत पर गर्व करना अच्छा है, परन्तु आंखे बन्द कर ऐसा नहीं किया जाना चाहिए इस विरासत के प्रति आलोचनात्मक दृष्टिकोण रखना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। कोई परम्परा कवल इसलिए अच्छी नहीं होती क्योंकि वह दीर्घ काल से चली आ रही है । एक ओर जहाँ हम महान सांस्कृतिक विरासत के धनी हैं, वही दूसरी ओर हमारे परम्परागत समाज में कुछ बातें बुरी भी हैं। अतः यदि हमें समाज को लोकतांत्रिक बनाना और उन्नति करनी है तो इन्हें बदलना होगा। जातिप्रथा हमें प्राचीन समाज से मिली है तथा यह एक बहुत बड़ी समस्या है, जिसका सामना हमारे लोकतत्र को करना पड़ रहा है । इसने हमारे समाज को उच्च और निम्न दो भागों में विभाजित कर दिया है हजारों वर्ष पूर्व हमारे समाज को या हिन्दू समाज को चार वर्गों में बॉटा गया था- ब्राहाण क्षत्रिय वैश्य तथा शूद्र । ये वर्ग “ वर्ण’’ कहे जाते थे। किन्तु भारत में सामाजिक विषमता के लिये ये वर्ण उतने उत्तरदायी नहीं हैं जितनी की जातिप्रथा । जातिप्रथा ने किसी परिवार अथवा जाति विशेष में जन्म के आधार पर व्यक्ति के लिए व्यवसाय सुनिश्चित कर दिये थे। जातिवाद का जन्म जातीयता से है । जातियता का जन्म जाति प्रथा से है। जाति प्रथा का निर्धारण जन्म के आधार पर होता है।

Authors and Affiliations

डा0 नूतन सिंह
एसोसिएट प्रोफेसर, इतिहास युवराजदत्त महाविद्यालय लखीमपुर खीरी, भारत

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  • साक्षात्कार-सोनी राना, छात्रा, युवराजदत्त महाविदयालय लखीमपुर खीरी।

Publication Details

Published in : Volume 1 | Issue 1 | November-December 2018
Date of Publication : 2018-12-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 181-184
Manuscript Number : GISRRJ1811312
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

डा0 नूतन सिंह, "लखीमपुर-खीरी जनपद की थारु जनजाति का सामाजिक व सांस्कृतिक अध्ययन ", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 1, Issue 1, pp.181-184, November-December.2018
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ1811312

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