Manuscript Number : GISRRJ1811315
कालिदासनाट्यत्रयी में छन्द - अलंकार - आस्वादगुण विवेचन - प्राकृत साहित्य के सन्दर्भ में काव्यशास्त्रीय परम्परा
Authors(1) :-डॉ. सीता राम शर्मा
कवि कालिदास के सभी रूपकों में काव्यशास्त्रीय दृष्टि से रीति, गुण, ध्वनि, अलंकार, रस और रसों की अभिव्यंजना के लिए विविध छन्दों का प्रयोग किया है। नाटक में उन्होंने शांत रस को भी सुन्दर स्थान प्रदान किया है। सभी रूपकों में संस्कृत के साथ ही प्राकृत एवं उसके भेद शौरसेनी, महाराष्ट्री, मागधी, पैशाची के साथ ही अपभ्रंश का भी प्रयोग होने से काव्यगत सौन्दर्य और निखरकर आया है। ऐसा प्रयोग कवि कालिदास कृत नाट्यत्रयी के अतिरिक्त अन्य रूपकों में कम ही मिलता है।
डॉ. सीता राम शर्मा
कालिदास, काव्यशास्त्रीय, रीति, गुण, ध्वनि, अलंकार, रस, छन्द। आभरणस्याभरणं प्रसाधनविधेः प्रसाधनविशेषः । उपमानस्यापि सखे प्रत्युपमानं वपुस्तस्था: ।। विक्रमोर्वशीयम् 2/3 Publication Details Published in : Volume 1 | Issue 1 | November-December 2018 Article Preview
प्रोफेसर (साहित्य) राजकीय धुलेश्वर आचार्य, (पी.जी. संस्कृत महाविद्यालय, मनोहरपुर, जयपुर), भारत
Date of Publication : 2018-12-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 200-204
Manuscript Number : GISRRJ1811315
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ1811315