Manuscript Number : GISRRJ181893
साठोत्तरी हिन्दी कविता में यथार्थ बोध
Authors(1) :-डा0 राकेश चन्द्र साहित्य समाज का दर्पण होता है। देश, काल और वातावरण के अनुरूप समाज में जब-जब परिवर्तन होता है, लोगों की भावनायें भी बदल जाती हैं। समाज और सामाजिक में होने वाले इस परिवर्तन को साहित्य में लाने का दायित्व लेखक अथवा कवि का होता है। परिवर्तन एक अनिवार्य एवं नैसर्गिक प्रक्रिया है। देश, काल एवं परिस्थितियों में होने वाले परिवर्तन के साथ-साथ कवि की भावनात्मक दुनिया भी बदल जाती है जिसमें वह जीता है। कविता समय, परिवेश और परिस्थितियों से ही उपजती है अर्थात समयानुकूल परिवर्तन के अभाव में कविता कभी भी चिरंजीवी नहीं हो सकती। उसे समय की चुनौती को स्वीकारते हुए ही आगे बढना होता है। जीवन और जगत में होने वाले बदलाव को समाहित करते हुए आम आदमी की पीड़ा, तड़प, छटपटाहट, कुंठा एवं संत्रास की अभिव्यक्ति ही इसे सार्थक बनाती है।
डा0 राकेश चन्द्र Publication Details Published in : Volume 1 | Issue 1 | November-December 2018 Article Preview
असि0प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, जे0वी0 जैन काॅलेज, सहारनपुर, भारत।
Date of Publication : 2018-11-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 205-208
Manuscript Number : GISRRJ181893
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ181893