Manuscript Number : GISRRJ192114
संस्कृत-व्याकरण परम्परा में वाक्य-चिन्तन
Authors(1) :-डॉ॰ मधुमिता वाक्य एक ओर पद-समूह है तो दूसरी ओर यह साकांक्ष पदों को ही अपने घटक के रूप में रखता है। निराकांक्ष पदों का समूह कभी वाक्य की श्रेणी में नहीं आता है। मीमांसकों ने तो पद-समूह के परस्पर सम्बन्ध के लिए तीन सहायक साधनों की भी उपयोगिता बताई है- योग्यता, आकांक्षा और सन्निधि। ई॰ पूर्व में वाक्य का यही परिदृश्य शास्त्रीय दृष्टिकोण से था। व्याकरण शास्त्र ने वाक्य की औपचारिक परिभाषा में एकतिङ्ग अथवा अव्यय, कारक और विशेषण सहित आख्यात पद को वाक्य कहा। परिणाम यह हुआ कि भर्तृहरि के समय तक (प्राय: 400 ई॰) वाक्य के विषय में आठ प्रकार के मतवाद प्रचलित हो गए।
डॉ॰ मधुमिता मीमांसक, ब्राह्मणग्रन्थ, सुबन्त, तिङन्त, वार्तिक, आख्यात, एकार्थीभाव, वाक्य, योग्यता, आकांक्षा, सन्निधि। Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 1 | January-February 2019 Article Preview
A-21, बैंकमेन्स कॉलोनी, चित्रगुप्तनगर, कंकरबाग पटना, बिहार, भारत
Date of Publication : 2019-03-25
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Page(s) : 78-88
Manuscript Number : GISRRJ192114
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ192114