संस्कृत-व्याकरण परम्परा में वाक्य-चिन्तन

Authors(1) :-डॉ॰ मधुमिता

वाक्य एक ओर पद-समूह है तो दूसरी ओर यह साकांक्ष पदों को ही अपने घटक के रूप में रखता है। निराकांक्ष पदों का समूह कभी वाक्य की श्रेणी में नहीं आता है। मीमांसकों ने तो पद-समूह के परस्पर सम्बन्ध के लिए तीन सहायक साधनों की भी उपयोगिता बताई है- योग्यता, आकांक्षा और सन्निधि। ई॰ पूर्व में वाक्य का यही परिदृश्य शास्त्रीय दृष्टिकोण से था। व्याकरण शास्त्र ने वाक्य की औपचारिक परिभाषा में एकतिङ्ग अथवा अव्यय, कारक और विशेषण सहित आख्यात पद को वाक्य कहा। परिणाम यह हुआ कि भर्तृहरि के समय तक (प्राय: 400 ई॰) वाक्य के विषय में आठ प्रकार के मतवाद प्रचलित हो गए।

Authors and Affiliations

डॉ॰ मधुमिता
A-21, बैंकमेन्स कॉलोनी, चित्रगुप्तनगर, कंकरबाग पटना, बिहार, भारत

मीमांसक, ब्राह्मणग्रन्थ, सुबन्त, तिङन्त, वार्तिक, आख्यात, एकार्थीभाव, वाक्य, योग्यता, आकांक्षा, सन्निधि।

  1. पाणिनि - अष्टाध्यायी 7.3.67 वचोऽशब्दसंज्ञायाम्।
  2. काशिका- 8.1.8 परगुणानामसहनमसूया।
  3. उपरिवत् - एते च प्रयोक्तृधर्मा नाभिधेयधर्माः।
  4. महाभाष्य 2.1.1
  5. महाभाष्य 2.1.1
  6. अमरसिंह - नामलिङ्गानुशासन (अमरकोष) 1.6.2
  7. अष्टाध्यायी 1.4.14
  8. डॉ॰ उमाशंकर शर्मा ‘ऋषि' - मीमांसा दर्शन, तर्कपाद (शाबर भाष्य सहित), भूमिका, पृष्ठ-8
  9. मीमांसा-सूत्र 2.1.46
  10. मीमांसा-सूत्र- शाबर भाष्य
  11. वाक्यपदीय 2.4.
  12. वाक्यपदीय 2.4. पर पुण्यराज की व्याख्या।
  13. राजशेखर काव्यमीमांसा, पृ॰-5
  14. महाभाष्य 2.1.1 पृ॰ 336-37
  15. महाभाष्य- पृ॰ 336
  16. महाभाष्य-- 2.1.1 पृ॰ 337
  17. काशिकावृत्ति- 8.1.4, पृ॰ 694
  18. डॉ॰ कपिलदेव द्विवेदी अर्थ-विज्ञान और व्याकरण दर्शन, पृ॰ 301
  19. वाक्यपदीय-2.485 पर पुण्यराज की टीका
  20. हरदत्त मिश्र पदमञ्जरी
  21. माघ- शिशुपालवध 2.112 (उत्तरार्ध)।
  22. महाभाष्य -2.1.1, पृ॰ 314
  23. महाभाष्य 2.1.1, पृ॰ 315
  24. महाभाष्य प्रदीप (कैयट कृत), पृ॰ 314
  25. महाभाष्य 2.1.1, पृ॰ 315
  26. उपरिवत् पृ॰ 322
  27. न्याय दर्शन (चौखम्बा संस्करण) की भूमिका, पृ॰ 19
  28. न्यायदर्शन 1.1.7 आप्तोपदेशः शब्दः।
  29. अन्नंभट्ट - तर्कसंग्रह, पृ॰ 64
  30. न्यायदर्शन 2.1.62-63
  31. डॉ॰ काली प्रसाद सिह न्यायदर्शनविमर्शः (कलकत्ता 1980), पृ॰ 177
  32. भाषा विज्ञान एवं भाषाशास्त्र (कपिलदेव द्विवेदी) पृ॰ 494
  33. डॉ॰ कपिलदेव द्विवेदी - भाषा विज्ञान एवं भाषाशास्त्र, पृ॰ 495
  34. आचार्य बलदेव उपाध्याय - संस्कृत शास्त्रों का इतिहास (शारदा मन्दिर, वाराणसी, 1969),
  35.      पृ॰ 222
  36. साहित्यदर्पण- 4.14 के अन्तर्गत उदाहरण, पृ॰ 153
  37. साहित्यदर्पण
  38. साहित्यदर्पण - 2.1 की वृत्ति
  39. साहित्यदर्पण - 2.1 की वृत्ति में उद्धरण -
  40. भिक्षु गौरीशंकर - सर्वतन्त्रसिद्धान्तपदार्थलक्षण संग्रह, 2006 (विक्रम संवत), पृ॰ 61,
  41. डॉ॰ उमाशंकर शर्मा ‘ऋषि', संस्कृत व्याकरण में कारकतत्वानुशीलन (1994 ई॰),पृ॰18 !
  42. नागेशभट्ट - लघुशब्देन्दुशेखर, मंगलाचरण
  43. शाबरभाष्य 11.1.7
  44. मीमांसा सूत्र 1.1.25
  45. शाबरभाष्य 1.1.25

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 1 | January-February 2019
Date of Publication : 2019-03-25
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 78-88
Manuscript Number : GISRRJ192114
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

डॉ॰ मधुमिता, "संस्कृत-व्याकरण परम्परा में वाक्य-चिन्तन ", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 2, Issue 1, pp.78-88, January-February.2019
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ192114

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