Manuscript Number : GISRRJ192115
काव्य की आत्मा के रूप में रस एवं इसके भेदों का विवेचन
Authors(1) :-डॉ॰ सुनील कुमार सिन्हा प्राय: सभी काव्यशास्त्रियों ने काव्य की आत्मा के रूप में रस को स्वीकार किया है। पाठक काव्य के माध्यम से रसों का आस्वादन करता है। रस वस्तुत: सहृदय के हृदय में स्थायिभाव के रूप में पूर्व से विद्यमान होता है; जो विभाव, अनुभाव और व्यभिचारीभाव के संयोग से रस के रूप में परिणत हो जाता है। रस को काव्य का जीवनाधायक तत्त्व है।
डॉ॰ सुनील कुमार सिन्हा रस, भरतमुनि, प्रस्थान, घटक, तत्त्व, नाट्य-जगत, Êङ्गार, नाटक, स्थायी भाव, आलम्बन भाव। Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 1 | January-February 2019 Article Preview
पी॰ जी॰ टी॰ (संस्कृत), राजकीयकृत + 2 उच्च विद्यालय, जयनगर, कोडरमा, झारखण्ड, भारत।
Date of Publication : 2019-03-25
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 89-97
Manuscript Number : GISRRJ192115
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ192115