विक्रमोर्वशीय में रस-तत्त्व

Authors(1) :-डॉ॰ किरण लता

इस शोधपत्र में महाकवि कालिदास रचित विक्रमोर्वशीय में प्रयुक्त काव्योपादान का विवेचन है। इसमें रसोद्‌भावन को प्रमुखता दी गई है क्योंकि रूपक के लिए आनन्द की सृष्टि में सबसे बढ़कर उसी का महत्त्व होता है। इस नाटक में कालिदास Êंगार को अंगी बनाते हुए इसके तीनों भेदों का ही नहीं अपितु करूण-विप्रलम्भ का भी प्रयोग किया है। विक्रमोर्वशीय का समापन अद्‌भुत रस से करके कालिदास ने इसे चमत्कारी बनाया है।

Authors and Affiliations

डॉ॰ किरण लता
फ्लैट न॰ – 27, जे॰ एफ – 2, ब्लॉक न॰ – 5, रोड न॰ – 12, राजेन्द्र नगर, पटना, बिहार, भारत

रूपक, रसात्मक, विक्रमोर्वशीय, विभाव, करूण-विप्रलम्भ, उद्‌भावन, अद्‌भुत-रस, विदूषक, हास्यरस, Êंगाररस, अभिनवगुप्त इत्यादि।

  1. विश्वनाथ - साहित्यदर्पण 10.
  2. शारदातनय - भावप्रकाशन (गायकवाड़ ओरियंटल सीरिज, संख्या-45, बड़ौदा 1930 ई०) चतुर्थ अधिकार।
  3. दशरूपक 4.5
  4. विक्रमोर्वशीय 13
  5. विक्रमोर्वशीय 10
  6. नाट्यशास्त्र 54 के पूर्व - स्मृतिर्नाम सुखदुःखकृतानां भावानामनुसरणम्।
  7. रसगंगाधर, पृ० 95 (चौखम्बा सं०) संस्कारजन्यं ज्ञानं स्मृतिः।
  8. विक्रमोर्वशीय 22
  9. डॉ॰ राजवंश सहाय हीरा - भारतीय साहित्यशास्त्र कोश (पटना, 1973), पृ०
  10. अभिनवगुप्त - अभिनवभारती (नाट्यशास्त्रटीका), भाग-1, पृ॰ 296 – एवं यो यस्य न बन्धुस्तच्छोके करुणोऽपि हास्य एवेति सर्वत्र योज्यम्।

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 1 | January-February 2019
Date of Publication : 2019-03-25
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 98-104
Manuscript Number : GISRRJ192116
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

डॉ॰ किरण लता, "विक्रमोर्वशीय में रस-तत्त्व", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 2, Issue 1, pp.98-104, January-February.2019
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ192116

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