Manuscript Number : GISRRJ192116
विक्रमोर्वशीय में रस-तत्त्व
Authors(1) :-डॉ॰ किरण लता इस शोधपत्र में महाकवि कालिदास रचित विक्रमोर्वशीय में प्रयुक्त काव्योपादान का विवेचन है। इसमें रसोद्भावन को प्रमुखता दी गई है क्योंकि रूपक के लिए आनन्द की सृष्टि में सबसे बढ़कर उसी का महत्त्व होता है। इस नाटक में कालिदास Êंगार को अंगी बनाते हुए इसके तीनों भेदों का ही नहीं अपितु करूण-विप्रलम्भ का भी प्रयोग किया है। विक्रमोर्वशीय का समापन अद्भुत रस से करके कालिदास ने इसे चमत्कारी बनाया है।
डॉ॰ किरण लता रूपक, रसात्मक, विक्रमोर्वशीय, विभाव, करूण-विप्रलम्भ, उद्भावन, अद्भुत-रस, विदूषक, हास्यरस, Êंगाररस, अभिनवगुप्त इत्यादि। Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 1 | January-February 2019 Article Preview
फ्लैट न॰ – 27, जे॰ एफ – 2, ब्लॉक न॰ – 5, रोड न॰ – 12, राजेन्द्र नगर, पटना, बिहार, भारत
Date of Publication : 2019-03-25
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 98-104
Manuscript Number : GISRRJ192116
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ192116