Manuscript Number : GISRRJ192125
संस्कृत महाकाव्य सर्जना के इतिहास में लौकिक संस्कृत महाकाव्यों का प्रारम्भ आर्षकाव्यों के पश्चात् महर्षि पाणिनि के समय से प्रारम्भ कैसे होता है
Authors(1) :-कैलाश चन्द्र बुनकर
रचनात्मक दृष्टि से यह महाकाव्य विदग्ध महाकाव्य के लक्षणों का अनुसरण करता है इसमें वैदर्भी एवं गौडी रीतियों के प्रयोगों में दक्षता विद्यमान है। लालित्य के साथ-साथ पदों में गेयता प्रस्फुटित हुई है। अंगीरस वीर है तथा शास्त्रीय दृष्टि से सभी काव्याङ्गों का समुचित विन्यास इसमें देखने को मिलता है।
कैलाश चन्द्र बुनकर
संस्कृत, महाकाव्य, सर्जना, इतिहास, लौकिक, आर्षकाव्य, महर्षि पाणिनि, समय Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 1 | January-February 2019 Article Preview
प्राचार्य, राजकीय लक्ष्मीनाथ शास्त्री संस्कृत, महाविद्यालय,चीथवाड़ी, जयपुर।
Date of Publication : 2019-01-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 140-156
Manuscript Number : GISRRJ192125
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ192125