संस्कृत महाकाव्य सर्जना के इतिहास में लौकिक संस्कृत महाकाव्यों का प्रारम्भ आर्षकाव्यों के पश्चात् महर्षि पाणिनि के समय से प्रारम्भ कैसे होता है

Authors(1) :-कैलाश चन्द्र बुनकर

रचनात्मक दृष्टि से यह महाकाव्य विदग्ध महाकाव्य के लक्षणों का अनुसरण करता है इसमें वैदर्भी एवं गौडी रीतियों के प्रयोगों में दक्षता विद्यमान है। लालित्य के साथ-साथ पदों में गेयता प्रस्फुटित हुई है। अंगीरस वीर है तथा शास्त्रीय दृष्टि से सभी काव्याङ्गों का समुचित विन्यास इसमें देखने को मिलता है।

Authors and Affiliations

कैलाश चन्द्र बुनकर
प्राचार्य, राजकीय लक्ष्मीनाथ शास्त्री संस्कृत, महाविद्यालय,चीथवाड़ी, जयपुर।

संस्कृत, महाकाव्य, सर्जना, इतिहास, लौकिक, आर्षकाव्य, महर्षि पाणिनि, समय

  1. डॉ. बलदेव उपाध्याय, संस्कृत साहित्य का इतिहास, पृ. 110
  2. डॉ. केशवराव मुसलगावकर - संस्कृत महाकाव्य परम्परा, पृ. 341
  3. द्रष्टव्य प्रतिमानाटक ( भास)
  4. डॉ. प्रभाकर वाटवे, संस्कृत काव्य के पंचप्राण, पृ. 101
  5. अश्वघोष, सौन्दरनन्द, 18 / 63, 64
  6. भोलाशंकर व्यास, संस्कृत कवि दर्शन, पृ. 61
  7. डॉ. बलदेव उपाध्याय, संस्कृत साहित्य का इतिहास, पृ. 174
  8. दृष्टव्य- कल्हण - राजतरंगिणी ।
  9. डॉ. राधावल्लभ त्रिपाठी, संस्कृत साहित्य का अभिनव इतिहास, पृ. 213
  10. डॉ. बलदेव उपाध्याय, संस्कृत साहित्य का इतिहास, पृ. 215
  11. महाकवि भट्टि - भट्टिकाव्य, 22/35
  12. संस्कृत साहित्य की रूपरेखा (पाण्डेय एवं व्यास) पृ. 189
  13. डॉ. बलदेव उपाध्याय, संस्कृत साहित्य का इतिहास, पृ. 189
  14. महाकवि भट्टि, रावणवधम्, 22, 23

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 1 | January-February 2019
Date of Publication : 2019-01-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 140-156
Manuscript Number : GISRRJ192125
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

कैलाश चन्द्र बुनकर , "संस्कृत महाकाव्य सर्जना के इतिहास में लौकिक संस्कृत महाकाव्यों का प्रारम्भ आर्षकाव्यों के पश्चात् महर्षि पाणिनि के समय से प्रारम्भ कैसे होता है", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 2, Issue 1, pp.140-156, January-February.2019
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ192125

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