Manuscript Number : GISRRJ19222
काव्यशास्त्र में काव्यस्वरूपविमर्श
Authors(1) :-साधना पाल काव्यष् पद यदि पुल्लिड्ण्ग में प्रयुक्त होता हैए तब यह पद उशना का वाचक होता है और जब नपुंसकलिड्ण्ग में लिखा जाता है तो वह कवि के भाव या कर्म अर्थात् काव्य का बोधक होता है। काव्य.स्वरूप विवेचन में प्रशस्त आचार्यों के मतों में ष्वाक्ष् को ही काव्य का अधिकरण माना गया है। अतः आचार्य जयदेव ने अपने ष्चन्द्रालोकष् में वाक्ष् को ही काव्य माना है। महाकवि कालिदास भी वागर्थ की प्रतिपत्ति के लिए वागर्थ की सम्पृक्ति स्वीकार करते हैं।
साधना पाल वाक्, काव्य, प्रशस्त, कालिदास, कवि Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 2 | March-April 2019 Article Preview
शोधच्छात्र, संस्कृत विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज।, भारत
Date of Publication : 2019-03-30
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Page(s) : 04-08
Manuscript Number : GISRRJ19222
Publisher : Technoscience Academy
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