काव्यशास्त्र में काव्यस्वरूपविमर्श

Authors(1) :-साधना पाल

काव्यष् पद यदि पुल्लिड्ण्ग में प्रयुक्त होता हैए तब यह पद उशना का वाचक होता है और जब नपुंसकलिड्ण्ग में लिखा जाता है तो वह कवि के भाव या कर्म अर्थात् काव्य का बोधक होता है। काव्य.स्वरूप विवेचन में प्रशस्त आचार्यों के मतों में ष्वाक्ष् को ही काव्य का अधिकरण माना गया है। अतः आचार्य जयदेव ने अपने ष्चन्द्रालोकष् में वाक्ष् को ही काव्य माना है। महाकवि कालिदास भी वागर्थ की प्रतिपत्ति के लिए वागर्थ की सम्पृक्ति स्वीकार करते हैं।

Authors and Affiliations

साधना पाल
शोधच्छात्र, संस्कृत विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज।, भारत

वाक्, काव्य, प्रशस्त, कालिदास, कवि

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 2 | March-April 2019
Date of Publication : 2019-03-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 04-08
Manuscript Number : GISRRJ19222
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

साधना पाल, "काव्यशास्त्र में काव्यस्वरूपविमर्श ", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 2, Issue 2, pp.04-08, March-April.2019
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ19222

Article Preview