संस्कृत वाङ्मय में आश्रम

Authors(1) :-डाॅ. नंदिता मिश्रा

सारांश- ऋषियों के आश्रम तपोवन ही उपयुक्त होते थे। जो शिक्षा के भी केन्द्र होते थे। परन्तु प्रत्येक के लिए गुरु के आश्रम में जाकर विद्या प्राप्त करना अनिवार्य नहीं था। कहीं-कहीं पिता भी पुत्र को शिक्षा देता था। जैसे- दिलीप ने रघु को धनुर्विधा की शिक्षा की थी। पति-पत्नी को भी शिक्षा दिया करता था। इन्दुमती ने ललित कलाओं की शिक्षा अज से प्राप्त की थी।

Authors and Affiliations

डाॅ. नंदिता मिश्रा
असिस्टेंट प्रोफेसर,संस्कृत विभाग, जवाहर लाल नेहरू स्मारक पी.जी, काॅलेज, महाराजगंज, उत्तर प्रदेश

संस्कृत, वाङ्मय, आश्रम, तपोवन, ऋषि, शिक्षा, गुरु।

  1. ‘‘आश्रमो ब्रह्मचर्यादौ वानप्रस्थे वने मठे’’ मे0को0
  2. श्रुतेरिवार्थं स्मृतिरन्वगच्छत।। - रघु0 2/2
  3. चातुर्वण्र्यं त्रयो लोकाश्चत्वारश्चाश्रमाः पृथक् । भूतं मण्यं भविष्यच्च सर्वं वेदात् प्रसिध्यति।। मनृ0 12/96
  4. ब्रह्मचारी गृही वनप्रस्थो भिक्षुश्चतुष्ट्ये।। अ0को0 2/7/4
  5. अपि प्रसन्नेन महर्षिणा त्वं सम्यग्निवनीयानुमतो गृहाय। कालोह्ययं संक्रमितुं द्वितीयं सर्वोपकारक्षममाश्रमं ते।। - रघु0 5/10
  6. अनेन धर्मः सविशेषमद्य में त्रिवर्गसारः प्रतिभाति भाविनि। त्वया मनोनिर्विषयाऽर्थकामया यदेक एव प्रतिगृह्य सेव्यते।। -कु0सं0 5/38
  7. विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः। रस वर्जं....................................।। गीता0 2/59
  8. शैशवैऽभ्यस्तविद्यानां यौवने विषयैषिणाम्। वार्धके मुनिवृत्तीनां योगेनान्ते तनुत्यजाम्।। रघु0 1/8
  9. विवेश कश्चिद्जटिलस्तपोवनं शरीरबद्धः प्रथमाश्रमो यथां कु0सं0 5/30
  10. अपि प्रसन्नेन महर्षिणा त्वं सम्यग्विनीयानुमतो गृहाय। कालोह्ययं संक्रमितुं द्वितीयं सर्वोपकाररक्षममाश्रमं ते।। रघु0 5/10
  11. अनभ्यासेन वेदानाभाचारस्य च वर्जनात्। आलस्यादन्नदोषाश्च मृत्युर्विप्रा´्जिधांसति।। - मनु0 5/4
  12. गायन्ति देवाः किल गीतकानि, धन्यास्तु ते भारत-भूमि-भागे।  स्वर्गापवर्गास्पदहेतु- भूते भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरव्वात् स्फुटक।
  13. योऽनधीत्य द्विजो वेदमन्यत्र कुरुते श्रमम्। स जीवन्नेव शूद्रत्वमाशु गच्छति सान्वयः।। मनु0, 2/168
  14. ब्राह्मणेन निष्कारणो धर्मः षडङ्गो वेदोऽध्येयो ज्ञेयश्च। म0भा0प0
  15. ‘‘नैतेषु प्रत्यक्षमस्त्यनृषेरतपसो वा’’- निरुक्त
  16. ब्राह्मणों में कथा है कि भरद्वाज ऋषि बाल्य, यौवन, जरा तीनों अवस्थाओं में वेद ही पढ़ते रहे और जब इन्द्र ने उनसे पूछा कि आप को चैथी अवस्था और मिले तो आप क्या करेंगे? उस पर भी उन्होंने यही उत्तर दिया कि ब्रह्मचर्यपूर्वक वेदाभ्यास करते ही उसे भी बिता दूंगा। पाँचवीं और मिलेगी तो वह भी वेद पढ़ने में ही जायेगी। महामहोपाध्याय पण्डित गिरिधर शम्र्मा चतुर्वेदी की श्री गीता प्रवचन माला, भाग-3, पुष्प-40, पृ0सं0 228 पर उद्धृत।
  17. यच्च वज्र्यं महाबाहो सदा धर्म स्थितैर्नरैः। यद् भोज्यं च समुदिष्टं कथयिष्यामहेवयम्।। वा0पु0 14/58
  18. भोज्यमन्नं पर्युषितं स्नेहाक्तं चिरसंभृतम्। अस्नेहा ब्रीहयः श्लक्षणा विकाराः पयसस्तथा।। वहीं, 14/59 तद्वद् द्दिदलकादीनि भोज्यानि मनुरब्रवीत्। वहीं, 14/60
  19. मातुः प्रस्रवणे वत्सः शकुनिः फलपातने। वहीं, 14/72 (पूर्वाद्ध)
  20. उपवासं त्रिरात्रं वा दूषितान्नस्य भोजने। अज्ञाते ज्ञातपूर्वेच नैव शुद्धिर्विधीयते।। वा0पु0 14/75
  21. गर्दमों भारवाहित्वे पूवा मृगग्रहणे शुचिः।। वहीं, 14/72 (उत्तरार्द्ध)
  22. शैशवेऽभ्यस्तविधानां यौवने विषयैषिणाम्। बार्धके मुनिवृत्तीनां योगेनान्ते तनुव्यजाम्।। रघु0 1/8
  23. त्वचं स मेध्यां परिधाय रौरवीमशिक्षतास्त्रं पितुरेव मन्त्रवत्। न केवलं तद्गुरुरेकपार्थिवः क्षितावभूदेकधनुर्धरोऽपि सः।। रघु0 3/31
  24. गृहिणी सचिवः सखीमिथः प्रियशिष्या ललिते कलाविधौ। करुणाविमुखेन मृत्युना हरता त्वां वद किं न मे हृतम्।। वहीं, 8/67

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 4 | July-August 2019
Date of Publication : 2019-07-25
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 70-76
Manuscript Number : GISRRJ192253
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

डाॅ. नंदिता मिश्रा, "संस्कृत वाङ्मय में आश्रम ", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 2, Issue 4, pp.70-76, July-August.2019
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ192253

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