Manuscript Number : GISRRJ192253
संस्कृत वाङ्मय में आश्रम
Authors(1) :-डाॅ. नंदिता मिश्रा सारांश- ऋषियों के आश्रम तपोवन ही उपयुक्त होते थे। जो शिक्षा के भी केन्द्र होते थे। परन्तु प्रत्येक के लिए गुरु के आश्रम में जाकर विद्या प्राप्त करना अनिवार्य नहीं था। कहीं-कहीं पिता भी पुत्र को शिक्षा देता था। जैसे- दिलीप ने रघु को धनुर्विधा की शिक्षा की थी। पति-पत्नी को भी शिक्षा दिया करता था। इन्दुमती ने ललित कलाओं की शिक्षा अज से प्राप्त की थी।
डाॅ. नंदिता मिश्रा संस्कृत, वाङ्मय, आश्रम, तपोवन, ऋषि, शिक्षा, गुरु।
Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 4 | July-August 2019 Article Preview
असिस्टेंट प्रोफेसर,संस्कृत विभाग, जवाहर लाल नेहरू स्मारक पी.जी, काॅलेज, महाराजगंज, उत्तर प्रदेश
Date of Publication : 2019-07-25
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 70-76
Manuscript Number : GISRRJ192253
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ192253