जैविक खेती के वर्तमान स्वरूप का मूल्यांकन (शस्य, उद्यानिकी एवं अन्य फसलें)

Authors(1) :-डॉ. नरेन्द्र कुमार सांखला

खरीफ दलहनों की भांति रबी दलहन फसलें भी मुख्य रूप से बारानी क्षेत्रों में बोई जाती हैं। चने का करीब 15-20 प्रतिशत क्षेत्र ही सिंचित है। इसलिए चने का अच्छा उत्पादन सर्दी की वर्षा (मावठ) पर निर्भर है। रबी तिलहनों में मुख्य रूप से सरसों की खेती की जाती है राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में जैविक उत्पादों की मांग आदि बिन्दुओं के मद्देजनर कृषि विभाग द्वारा जैविक खेती को बढ़ावा देने हेतु जैविक खेती कार्यक्रम लिया गया। आज भी 20 प्रतिशत किसान होर्टीकल्चर, 20 प्रतिशत स्पाइस, 63 प्रतिशत तिलहन 54 प्रतिशत दलहन एवं 92 प्रतिशत अनाज की फसलें ले रहे हैं। अनेक प्रकार की फसलों की खेती करने वाले कृषक आसानी से ओर्गेनिक खेती अपनाने में सफल होंगे। 46 प्रतिशत से अधिक किसानों ने रसायनों की लागत में बढ़ोतरी, तकनीकी ज्ञान का अभाव, उपज का उचित दाम न मिलना तथा खेती के सभी आदानों की लागत में बढ़ोतरी को महत्वपूर्ण समस्या माना है। 38 प्रतिशत से अधिक किसानों द्वारा कुशल मजदूरों की कमी, सही सूचना का अभाव एवं फसलों की गुणवत्ता में कमी को समस्या माना गया है। यह हमारे लिये बहुत महत्वपूर्ण है कि एक नया कार्यक्रम अब पर्णतया लाभ लेने वालों की इच्छा और आवश्यकता के अनुसार प्रारम्भ किया जा सकेगा। इनमें से करीब 20 प्रतिशत गत् 5 वर्षों से रसायनिक उर्वरक काम में ले रहे हैं तो करीब इतने ही लोग इसे 20 वर्षों से इस्तेमाल कर रहे है ।

Authors and Affiliations

डॉ. नरेन्द्र कुमार सांखला
भूगोल विभाग‚ पोस्ट – डोक्ट्ररल फैलो (ICSSR)‚ राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर‚भारत।

जैविक‚ खेती‚ वर्तमान‚ स्वरूप‚ मूल्यांकन‚ खरीफ‚ दलहन‚ राजस्थान।

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Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 3 | May-June 2019
Date of Publication : 2019-06-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 67-94
Manuscript Number : GISRRJ192315
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

डॉ. नरेन्द्र कुमार सांखला, "जैविक खेती के वर्तमान स्वरूप का मूल्यांकन (शस्य, उद्यानिकी एवं अन्य फसलें)", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 2, Issue 3, pp.67-94, May-June.2019
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ192315

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