रस-सूत्र और उसके व्याख्याकार

Authors(1) :-डाॅ. भावना शुक्ला

वाचिक, आंगिक एवं साप्तिक अभिनयके द्वारा ज¨ हमारी चित्तवृत्तिय का विश्¨ष रूप से विभावन, अर्थात् ज्ञापन कराने वाल् हेतु या निमित्त हते हैं, उन्हें ही विभाव की संज्ञा प्रदान की गयी है यहाँ चितवृत्तिय से स्थायी एवं व्यभिचारी नामक भाव ही अभिप्रेत हैं जिन्हें विभाव विभावित अथवा ज्ञापित कराते हैं। आलम्बन एवं उद्दीपन भेद से विभावद प्रकार हते हैं। उक्त चित्तवृत्तिय के विषयभूत विभाव आलम्बन कहे जाते हैं तथा भावक उद्दीप्त करने वाल्¨ उन्हें समुत्त्¨जन प्रदान करने वाल्¨ विभाव उद्दीपन हते हैं। भाविके आलम्बन एवं उद्दीपन की क¨ई संख्या नियत नहीं है; नायकादि तथा देश-काल आदि भेद से वे कई प्रकार के ह जाते हैं।

Authors and Affiliations

डाॅ. भावना शुक्ला
संस्कृत विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज, भारत

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 3 | May-June 2019
Date of Publication : 2019-06-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 19-21
Manuscript Number : GISRRJ19234
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

डाॅ. भावना शुक्ला, "रस-सूत्र और उसके व्याख्याकार", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 2, Issue 3, pp.19-21, May-June.2019
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ19234

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