वेदों में शान्ति की अवधारणा महर्षि दयानन्द के परिप्रेक्ष्य में

Authors(1) :-चन्द्र शेखर

‘शमु उपसमे’ धातु से ‘इन’ प्रत्यय लगने पर शान्ति पद सिद्ध होता है। जिसका अर्थ है- मानसिक सुख, निरोग, सन्ताप से निवृत्ति एवं भद्र आदि। वेद के शान्ति करण पाठ में प्रार्थना है, कि ब्रह्माण्ड के समस्त पदार्थ अथवा दिव्य शक्तियां हमारे और अन्य सभी के लिए शुभकारी हों, यही शान्ति है। शान्ति सामाजिक, धार्मिक, प्राकृतिक तत्वों में सन्तुलन विशेष है। 19 वीं शताब्दी में कुछ ऐसे गणमान्य व्यक्तियों ने भारत में जन्म लिया जोकि युग द्रष्टा एवं समाज सुधारक रहे हैं, जिनमें से महर्षि दयानन्द सरस्वती एक हैं। जिन्होंने अपने जीवन के समस्त भौतिक सुखों को छोड़कर वैदिक ज्ञान की भानु परछाई और काली घटाओं के तुल्य मिथ्या ज्ञान की मेघमाला को ज्ञान मित्र के तीखे बाणों से सर्वथा छिन्न-भिन्न करने का प्रयत्न किया। महर्षि दयानन्द सरस्वती ने वेदों को अपना आदर्श-ग्रन्थ माना है और महर्षि मनु व योगेश्वर श्रीकृष्ण को अपने उपदेशों एवं पुस्तकों में महत्वपूर्ण स्थान दिया है। महर्षि दयानन्द सरस्वती ने जिस ज्ञान को अपनी पुस्तकों में प्रकाशित किया है उसका आधार वेद है। महर्षि की पुस्तकों का सत्य ज्ञान प्राप्त करने में अतिशय महत्व है ठीक वैसे ही जैसे उनकी वाग्मिता तथा विद्वत्ता युक्त उपदेशों का महत्व है। उनके उपदेशों में जहां ईश्वर, मोक्ष, धर्म, भक्ति, वेद, यज्ञ, शान्ति, सत्य स्वरूप, पुनर्जन्म, वर्णाश्रम धर्म और संस्कारों का विशेष प्रतिपादन पूर्वक प्रमाणित किया गया है। जिसे आधार मानकर मेरे इस शोध पत्र का विषय ‘वेदों में शान्ति की अवधारणा महर्षि दयानन्द के परिप्रेक्ष्य में’ निर्धारित है। दयानन्द जी के उपदेश संग्रह एवं उनकी पुस्तकों में शान्ति का स्वरूप हमें दो रूपों में देखने को मिलता है, एक तो व्यक्तिगत शान्ति दूसरा राष्ट्रीय शान्ति। जब हम व्यक्तिगत शान्ति की चर्चा करते हैं तो शान्ति का अर्थ हम तीन प्रकार के दुखों के नाश से लेंगे जैसे सांख्य में आदिभौतिक, अध्यात्मिक और आदिदेविक इन तीनों प्रकार के दुखों का नाश ही मोक्ष है। जिससे निवृत्ति को भारतीय दार्शनिक मतों में विभिन्न विधियों से जाना है। जब हम शान्ति की अवधारणा राष्ट्रीय शान्ति के रूप में देंगे तो यह अनुशासन के रूप में देखी जाएगी। राष्ट्र में किस प्रकार अनुशासन स्थापित हो अर्थात समाज के नियमों या कानूनों का पालन करें, जिससे कि शान्ति स्थापित रहे। इस शोधपत्र में शान्ति के इन दोनों पक्षों को महर्षि दयानन्द के मतानुसार वेदों को आधार ग्रन्थ मानकर विवेचित् करेंगे।

Authors and Affiliations

चन्द्र शेखर
शोधच्छात्र, संस्कृत विभाग, जा.मि.इ., नई दिल्ली,भारत

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Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 3 | May-June 2019
Date of Publication : 2019-06-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 22-27
Manuscript Number : GISRRJ19236
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

चन्द्र शेखर, "वेदों में शान्ति की अवधारणा महर्षि दयानन्द के परिप्रेक्ष्य में", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 2, Issue 3, pp.22-27, May-June.2019
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ19236

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