श्रीमद्भगवद्गीता में कर्मवाद की आधुनिक में उपयोगिता

Authors(1) :-इन्दल

कर्मयोगी अपनी जीवन यात्रा के समस्त संघर्षों में अपने भीतर से प्रेरणा एवं शक्ति प्राप्त करता है। वह दुष्प्रकृति वाले लोगों की द्वेषपूर्ण आलोचना से विचलित नहीं होता। गीता का कर्म योग यह शिक्षा देता है कि व्यक्ति को जीवन की विषय परिस्थितियों से कभी पलायन नहीं करना चाहिए बल्कि समस्त चुनौतियों को स्वीकार करके डटकर उनका सामना कर जय-पराजय, लाभ-हानि तथा यश-अपयश की चिन्ता परमात्मा पर छोड़ देना चाहिए। मनुष्य को अपने कर्मों के अनुसार ही फल की प्राप्ति होती है।

Authors and Affiliations

इन्दल
पूर्व शोधच्छात्र, संस्कृत विभाग, बी0आर0डी0बी0डी0पी0जी0 काॅलेज आश्रम बरहज देवरिया, उत्तर प्रदेश,भारत।

श्रीमद्भगवद्गीता, कर्मवाद, जीवन, यश, अपयश, मनुष्य, दर्शन, शक्ति।

1. श्रीमद् भगवद्गीता-2/471. श्रीमद् भगवद्गीता-2/47

2. ईशोपनिषद-2

3. महाभारत

4. श्रीमद् भगवद्गीता-2/485. श्रीमद् भगवद्गीता-3/4

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 2 | March-April 2019
Date of Publication : 2019-04-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 76-79
Manuscript Number : GISRRJ192421
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

इन्दल, "श्रीमद्भगवद्गीता में कर्मवाद की आधुनिक में उपयोगिता", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 2, Issue 2, pp.76-79, March-April.2019
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ192421

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