पं. दीनदयाल उपाध्याय की लोकतंत्र में पुरोधा की आर्थिक चिन्तन का प्रभाव

Authors(1) :-डॉ. जगदीश प्रसाद जाटः

लोकतंत्रा के पुरोधा राष्ट्रीय अवधारणाएँ दीनदयाल उपाध्याय भारतीय संस्कृति के अधिष्ठान पर ही राष्ट्रीय स्वातंत्र्य को गाढना चाहते थे। अतः पाश्चात्य अवधारणाएँ जो सामान्यतः सर्वसम्मत-सी मानी जाती है, दीनदयाल उनके अंधे अनुयायी बनने को तैयार नहीं थे। पाश्चात्य राज्य परिकल्पना, पाश्चात्य सेक्युलरिज्म, पाश्यचात्य लोकतंत्र तथा पाश्चात्यों के विभिन्न वाद, इन सब पर दीनदयाल अपनी भारतीयतावादी टिप्पणी करते हैं तथा वे इन सब परिकल्पनाओं के भारतीयकरण के हिमायती हैं। वे मानते थे कि लोकतंत्र भारत को पश्चिम की देन नहीं है भारत की राज्यावधारणा प्रकृतितः लोकतंत्रवादी है। वे लिखते हैं : "वैदिक 'सभा' और 'समिति' का गठन जनतंत्रीय आधार पर ही होता था तथा मध्यकालीन अनेक राज्य पूर्णतः जनतंत्रीय थे। राजतंत्रीय व्यवस्था में भी हमने राजा को मर्यादाओं में जकड़ कर प्रजानुरागी ही नहीं, प्रजा (जन) अनुगामी भी माना है। इन मर्यादाओं का अतिक्रमण करने वाले नृपतियों के उदाहरण अवश्य मिल सकते हैं। किन्तु उनके विरूद्ध जनता का विद्रोह तथा उनको आदर्श शासक न मानकर, हीनता की श्रेणी में गिनने के प्रयत्नों से ही हमारी मौलिक जनतंत्रीय भावना की पुष्टि होती है।" दीनदयाल कहते हैं “लोकतंत्र की एक व्याख्या की गई है कि वह वाद-विवाद से चलने वाला राज्य है। 'वादे-वादे जायते तत्व बोधाः' कि यह हमारे यहां की पुरानी उक्ति है। किंतु यदि दूसरे दृष्टिकोण को समझने का प्रयत्न न करते हुए अपने ही दृष्टिकोण का आग्रह करते जाए, तो वादे-वादे जायते कंठशोषाः' यह उक्ति चरितार्थ होगी। वाल्टेयर ने जब कहा कि 'मैं तुम्हारी बात सत्य नहीं मानता; किंतु अपनी बात कहने के तुम्हारे अधिकार के लिए मैं पूरी शक्ति से लडूंगा'। तो उसने मनुष्य के केवल 'कंठशोषाः' को ही स्वीकार किया। भारतीय संस्कृति इससे आगे बढ़कर वाद-विवाद' को 'तत्वबोध के साधन के रूप में देखती है।" पश्चिम में प्रजातंत्र के उदय की प्रक्रिया, उसके पूंजीवाद के रूप में विकृत हो जाने एवं कार्लमार्क्स की तानाशाही परक प्रतिक्रिया आदि का दीनदयाल जी ने विषद् विवेचन किया।

Authors and Affiliations

डॉ. जगदीश प्रसाद जाटः
एसोसिएट प्रोफेसर, स्वः लक्ष्मी कुमारी बधाला गर्ल्स पी.जी. कॉलेज गोविन्दगढ़ चौमूँ (जयपुरम्)

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Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 2 | March-April 2019
Date of Publication : 2019-04-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 95-105
Manuscript Number : GISRRJ192423
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

डॉ. जगदीश प्रसाद जाटः, "पं. दीनदयाल उपाध्याय की लोकतंत्र में पुरोधा की आर्थिक चिन्तन का प्रभाव", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 2, Issue 2, pp.95-105, March-April.2019
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ192423

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