Manuscript Number : GISRRJ192427
स्मृति कालीन समाज एंव वर्तमान समाज की समीक्षा
Authors(1) :-प्रभा चतुर्वेदी
आधुनिक भारत में वर्णव्यवस्था का नहीं जातिवाद का प्राबल्य है। कतिपय सन्दर्भो में यह पहले की अपेक्षा अधिक संगठित तथा आक्रामक हो चुकी है। आज यह अपने जिस उग्र रूप में है उसे सहजतापूर्वक समाप्त तो नहीं किया जा सकता, क्योंकि कुछ लोग इसे हितकर तो कुछ अहितकर मानते हैं, परन्तु इसके दोषों को दूर करने का प्रयास अवश्य करते रहना चाहिये। डॉ. मजूमदार का मत है कि “अस्पृश्यता एक जाति का दूसरी जाति द्वारा शोषण है और ऐसी ही अन्य इस प्रथा की हानिकारक सहयोगी प्रथाओं को समाप्त कर देना चाहिये, न कि सम्पूर्ण व्यवस्था को। क्षतग्रस्त विषाक्त अंगुली को काटना चाहिये न कि पूरे हाथ को। यदि हम जनतंत्र को सुदृढ़ करना चाहते हैं तो जातिगत रूढ़ियों को शिथिल करना होगा और योग्यता एवं समानता को महत्त्व देना होगा।
प्रभा चतुर्वेदी
शोध छात्रा, संस्कृत विभाग, राजकीय महाविद्यालय, कोटा, राजस्थान, भारत
वर्ण, व्यवस्था, सदस्य, कर्तव्य, स्मृति, समाज, जातिप्रथा, भारतीय, हिन्दू, धर्म।
- तोमर, प्रो. राम बिहारी सिंह, भारतीय सामाजिक संस्थाएं, प्र.सं.1959, पृ.159-165
- "It is urged emphatically that the Indian Caste System is the natural result of the interaction of a number of geographical, social, political, religious and economic factors not elsewhere found in conjunction. Hutton, J.H. Caste in India, P.188.
- पाण्डेय, डॉ. जय नारायण, भारत का संविधान, संस्करण पैंतालिसवां, 2012, संविधान का अनुच्छेद 25, पृ.314-315
- शाह, एस.एल., भारत में जाति एवं वर्ण व्यवस्था कब और कैसे? प्र.सं.2005, पृ.91
- (क) सम्पा., रमणिका गुप्ता, आदिवासी कौन, प्र.सं.2008, पृ.26-27
(ख) जैन, श्रीचंद्र, आदिवासियों के बीच, प्र.सं.2007, पृ.11-12
- उपजातियाँ, यथा-अकेले कुर्मी जाति में लगभग चार हजार से अधिक उपजातियाँ मिलती हैं। निर्मोही, डॉ. एस.एल. सिंह देव, भारत की जातियाँ उद्भव एवं विकास, खण्ड-2, प्र.सं. 2011, पृ.895-945
- निर्मोही, डॉ. एस. एल. सिंह देव, भारत की जातियां उद्भव एवं विकास, प्रथम खण्ड, प्र.सं.2011, पृ.56-59, 78-80 तथा द्वितीय खण्ड, पृ. 628
- ncbc.nic.in/centrallistifobc.html (as on 04.03.2013)
- in/lists-of-scheduled-castes-scheduled (as on 03.03.2013)
- वही
- संपा.-अहमद, इम्तियाज, अनु.-नदीम नरेश, भारत के मुसलमानों में जातिव्यवस्था और सामाजिक स्तरीकरण, पं.सं.2003, पृ.204
- निर्मोही, डॉ. एस.एल. सिंह देव, भारत की जातियाँ उद्भव एवं विकास, प्रथम खण्ड, प्र.स. 2011, पृ.34
- तोमर, प्रो. राम बिहारी सिंह, भारतीय सामाजिक संस्थाएँ, सं.1960, पृ.196-197
- It will be understood then that one important function of caste, perhaps the most important of all its functions' and the one which above all others makes caste in India an unequal institution, is or has been, to integrate Indian Society, to weld in to one community the various competing, if not incompatible groups composing if. Hutton, J.H., Caste in India, p.119.
- तोमर, प्रो. राम बिहारी सिंह, भारतीय सामाजिक संस्थाएँ, प्र.सं.1959, पृ.176-177
- तोमर, प्रो. राम बिहारी सिंह, भारतीय सामाजिक संस्थाएँ, प्र.सं.1959, पृ.180
- पाण्डेय, डॉ. जय नारायण, भारत का संविधान, पैंतालिसवाँ सं.2012, संविधान का अनुच्छेद 15(1), 15(2), पृ.127-128
- वही, अनुच्छेद 16(1), 16(2), पृ.141
- वही, अनुच्छेद 17, पृ.172-173
- वही, अनुच्छेद 29(2), पृ.331
- वही, अनुच्छेद 46, पृ.401
- सम्पा.-नरेला, जे.पी., पत्रिका-जाति उन्मूलन, जाति विहीन, वर्ग विहीन समाज निर्माण के लिए, अंक 1, मार्च-मई 2013, हिन्दी, पृ.28
- तोमर, प्रो. राम बिहारी, भारतीय सामाजिक संस्थाएँ, पं.सं.1959, पृ.205-209
- तोमर, प्रो. राम बिहारी, भारतीय सामाजिक संस्थाएँ, पं.सं.1959, पृ.216-226
- "Untouchability, exploitation or one caste by another and such other harmful concomitants of the system should be done away with, and not the whole system, the broken, poisoned finger should be amputated not the whole hand." Mazumdar, D.N. and Madan, T.N. 'Social Anthropology', p.238.
Publication Details
Published in : Volume 2 | Issue 2 | March-April 2019
Date of Publication : 2019-04-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 132-141
Manuscript Number : GISRRJ192427
Publisher : Technoscience Academy
ISSN : 2582-0095
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