प्राचीन भारतीय शिक्षा

Authors(1) :-उमेश चन्द्र मिश्र

तत्कालीन एवं आधुनिक कालीन भारतीय समाज की तुलना करें तो बहुत अंतर आ चुका है। संयुक्त परिवार एकल परिवार की ओर शायद इसलिए बढ़ रहा है की आज वैसा संस्कार एवं शिक्षा लुप्तप्राय होती जा रही है एवं अत्यधिक तात्कालिक सुखाभिलाषा लोगों को अवसाद ग्रस्त कर दे रही है । शनैः शनैः पौर्वात्य सभ्यता पर पाश्चात्य सभ्यता निर्वाध गति से अपनी पकड़ मजबूत करती जा रही है। आज महाकवि कालिदास के समय की शिक्षा एवं संस्कारों को उनके काव्यों से लेने की आवश्यकता है,जिससे मानव समाज में हो रही विकृति को दूर किया जा सके और ‘सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय’ को साकार कर सभी सामाजिक एकता के सूत्र में बंध सके।

Authors and Affiliations

उमेश चन्द्र मिश्र
प्रवक्ता(पी.जी.टी.)-संस्कृत, जे.बी.सी.+२ विद्यालय ,जामताड़ा, झारखंड, भारत

आधुनिक कालीन‚ भारतीय‚ समाज‚ प्राचीन‚ साहित्य‚ शिक्षा।

  1. संस्कृत साहित्य का इतिहास– वाचस्पति गैरोला
  2. प्राचीन भारतीय संस्कृत–‍ डॉ.विरेन्द्र कुमार सिंह
  3. संस्कृत साहित्य का इतिहास– डॉ.कपिल देव द्विवेदी
  4. अभिज्ञानशाकुन्तलम् – डॉ.कपिल देव द्विवेदी
  5. मेघदूतम्– श्री तारिणीश झा
  6. रघुवंशम्– डॉ श्री कृष्णमणि त्रिपाठी
  7. अभिज्ञानशाकुन्तलम्– सुबोधचन्द्र पंत
  8. संस्कृत साहित्य का इतिहास– बलदेव उपाध्याय

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 4 | July-August 2019
Date of Publication : 2019-07-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 28-30
Manuscript Number : GISRRJ19248
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

उमेश चन्द्र मिश्र, "प्राचीन भारतीय शिक्षा", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 2, Issue 4, pp.28-30, July-August.2019
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ19248

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