पुराणों में सृष्टि विवेचन

Authors(1) :-डाॅ0 उधम मौर्य

पुराणों में जगत् की उत्पत्ति, स्थिति एवं लय का स्पष्ट प्रमाण मिलता है। पुराणों सृष्टि का मूल कारण परमात्मा को माना गया है। उन्हें सभी जगह उपस्थित होने के कारण वासुदेव कहा जाता हैै। वे भगवान ही सृष्टि के त्रिविध प्रयोजन सृष्टिस्थिति-संहार के निमित्त क्रमशः ब्रह्मा, विष्णु और शिव इन संज्ञाओं को धारण करते हैं। पुरुष और प्रकृति के संयोग से इस सृष्टि का विकास होता है।

Authors and Affiliations

डाॅ0 उधम मौर्य
भूतपूर्व शोधछात्र, दर्शन एवं धर्म विभाग, कला संकाय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी,उत्तर प्रदेश, भारत।

ब्राह्मी -सृष्टि, रौद्री सृष्टि, अंगज सृष्टि, मानवी एवं मैथुनी सृष्टि, सिसृक्षोन्मुख, हिरण्यगर्भ।

  1. पुराणेष्वेष बहवो धर्मास्ते................। वायु पुराण 104/11-17
  2. सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च।
  3. वंशानुचरितं चेति पुराणं पंचलक्षणम्।। भागवत पुराण तथा विष्णु पुराण6.24।
  4. भूतमात्रेन्द्रिसधियां जन्मसर्ग उदाहृतः।
  5. ब्रह्मणा गुण वैषम्याद् विसर्गः पौरुषः स्मृतः।। भागवत पुराण10.3
  6. अव्याकृंत गुणक्षोभान्महतस्त्रिवृतोहमः।
  7. भूतमात्रेन्द्रियार्थानां सम्भवः सर्ग उच्यते।। वही, 12.7.11
  8. ततः स वासुदेवेति विद्वद्भिः परिवठ्यते। विष्णुपुराण2.12
  9. विष्णुपुराण2.10-15 एवं पद्मपुराण सृष्टि-खण्ड 2/83-86
  10. सृष्टिस्थित्यन्तकरणीं ब्रह्मविष्णुशिवात्मिका।
  11. स संज्ञायाति भगवानेक एव जनार्दनः।। विष्णुपुराण2.66
  12. परस्य ब्रह्मणोरूपं पुरुषः प्रथमं द्विज।
  13. व्यक्ताव्यक्ते तथैवान्ये रूपेकालस्तथा परम्।। वही- 1.2.15
  14. अनादिरात्मा पुरुषो निर्गुणः प्रकृते परः।
  15. प्रत्यग्धामा स्वयं ज्योतिर्विश्वं येन समन्वितम्।। भागवत पुराण26.3
  16. सत्वं रजस्तमश्चैव गुणत्रयमुदाहृतम्।
  17. साम्यावस्थितिरे तेषां प्रकृतिः परिकीर्तिता।। मत्स्य पुराण 3/14
  18. वायु पुराण- 1/41
  19. प्रकृतेर्लक्षणं वक्तंु न कोऽपि क्षमो भवेत्। देवीभ0 2.2.8,9
  20. प्रधान पुरुषाव्यक्तकालास्तु प्रविभागशः।
  21. व्यक्तं विष्णुतथाव्यक्तं पुरुषः काल एव च।
  22. क्रीडतो बालकस्यैव चेष्टां तस्य निशामय।। वि0 पु0 1.2.17-18
  23. भागवत पुराण5.21-22
  24. सप्तद्वीपैः सप्तनाकैः सप्तपातालसंज्ञकैः।
  25. एभिर्लोकैश्च ब्रह्माण्डं ब्रह्मादिकृतमेव च।। ब्रह्मवै0 पु0 1.7.14
  26. प्रजापतिर्वा एकोऽग्रेऽतिष्ठत्स नारमतैकः सोत्मामभिहध्यात्वा वाह्वी प्रजा असृजत्। मैत्रा0 1/6
  27. विष्णुपुराण7.8, 10, 12
  28. वही - 1.6.3-6
  29. एवं युक्त कृतस्तस्य दैवं चावेक्षतस्तदा।
  30. ताभ्यां रूपविभागाभ्यां मिथुनं समपद्यत।। भा0पु0 3.12.51, 52
  31. वि0पु0 1.7.13-15
  32. वही- 1.5.19-25
  33. वेदान्त सिद्धान्त मार्तण्ड, पृष्ठ

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 5 | September-October 2019
Date of Publication : 2019-09-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 35-39
Manuscript Number : GISRRJ19258
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

डाॅ0 उधम मौर्य, "पुराणों में सृष्टि विवेचन", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 2, Issue 5, pp.35-39, September-October.2019
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ19258

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