पूर्वी राजस्थान में जल संचय के परम्परागत स्त्रोंत (बावड़ियों के विशेष सन्दर्भ में)

Authors(1) :-डाॅ. मुकेश कुमार शर्मा

पूर्वी राजस्थान सम्पूर्ण प्रदेश के महत्वपूर्व भू-भाग के रूप में ज्ञात होता हैं। श् यह क्षेत्र अपने गौरवशाली और समृद्धशाली सांस्कृतिक अतीत के लिए विख्यात रहा हैं। यह क्षेत्र वीर और वीरांगनाओं की भूमि हैं। यहाँ समय-समय पर अनेक वंशों के योग्य व पराक्रमी शासक अवतीर्ण हुये जिन्होनें स्थापत्य (मुख्यतः बावड़ियों, तालाबों, कुण्डों) के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिया। जल संरक्षण की दिशा में रियासतकालीन शासकों ने बढ़-चढ़ कर रूचि ली । इन शासकों ने पानी के बहाव क्षेत्रों को नियंत्रित कर उसका संरक्षण हो एवं राज्य की जनता को सदियों तक पानी उपलब्ध रहे, इसके लिए समय-समय पर विशाल व अनुपम बावड़ियों, तालाबों, कुण्डों का निर्माण कराकर वर्षांे पूर्व उस समय में जल संचय (संरक्षण) का संदेश दिया जो वर्तमान समय में महत्ती आवश्यकता के रूप में प्रासंगिक हैं। इन बावड़ियों का निर्माण यहाँ के शासकों ने परोपकार व जनकल्याण की भावना से अभिभूत होकर करवाया। वर्तमान समय में न केवल राजस्थान अपितु वैश्विक जल संकट की विकट स्थिति में इन बावड़ियों रूपी सांस्कृतिक धरोहरो का महत्त्व स्वतः स्पष्ट हो जाता हैं।

Authors and Affiliations

डाॅ. मुकेश कुमार शर्मा
सहा. आचार्य, इतिहास विभाग, एस.एस.जी.पारीक, पी.जी.महिला महाविद्यालय चैमूं जयपुर

शिलालेख, जल संचय, परम्परागत, अभिलेख, स्मारक, लोकोपकारी, जन कल्याण, बावड़ी, नाड़ी, टांका, जोहड़ (टोबा), खड़ीन, कुआँ, संरक्षण, पेयजल, रियासत कालीन।

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Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 5 | September-October 2019
Date of Publication : 2019-09-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 79-85
Manuscript Number : GISRRJ192615
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

डाॅ. मुकेश कुमार शर्मा, "पूर्वी राजस्थान में जल संचय के परम्परागत स्त्रोंत (बावड़ियों के विशेष सन्दर्भ में) ", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 2, Issue 5, pp.79-85, September-October.2019
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ192615

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