नाट्यशास्त्र में दोष-विमर्श

Authors(1) :-प्रियंका मौर्या

संस्कृत के लक्षण-ग्रन्थों में दोष का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। काव्यशास्त्र के आचार्यों का विचार था कि दोष काव्य का अपकर्ष या विघटन करने वाले होते हैं। अतः कवि को काव्य की रचना करते समय दोषों से सावधानी बरतनी चाहिए। काव्य दोषों का सर्वप्रथम उल्लेख भरतमुनि ने किया है। नाट्यशास्त्र में भरतमुनि दोषों का लक्षण न देकर सीधे दस प्रकार के दोषों की चर्चा करते हैं।

Authors and Affiliations

प्रियंका मौर्या
शोधच्छात्रा (संस्कृत विभाग)‚ गया प्रसाद स्मारक, राजकीय महिला स्नातकोत्तर, महाविद्यालय अम्बारी (आजमगढ़)‚ उत्तर प्रदेश‚ भारत।

काव्यशास्त्र‚ भरतमुनि‚ नाट्यशास़्त्र‚ दोष‚ दोषभेद‚ लक्षण‚ अपकर्ष‚ कवि‚ काव्य।

1.नाट्यशास्त्र, डॉ0पारसनाथद्विवेदी कृत व्याख्या, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय

2.नाट्यशास्त्र

3.वही 16/89

4.अभिनवभारतीरविशंकर नागर, के0एल0जोशी, परिमल संस्कृत ग्रन्थमाला संख्या 4

5.नाट्यशास्त्र16/89 भाग-2

6.अभिनवभारती, भाग-2

7.नाट्यशास्त्र, 16/90

8.अभिनवभारती, भाग-2

9.वही, भाग-2

10.नाट्यशास्त्र, 16/90

11.वही 16/91

12.अभिनवभारती, भाग-2

13.वही, भाग-2

14.वही, भाग-2

15.वही, भाग-2

16.नाट्यशास्त्र, 16/92

17.वही, भाग-2

18.अभिनवभारती, भाग-2

19.नाट्यशास्त्र, 16/93

20.अभिनवभारती, भाग-2

21.वही, भाग-2

22.नाट्यशास्त्र, 16/93

23.वही, 16/94

24.वही, 16/94

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 6 | November-December 2019
Date of Publication : 2019-12-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 70-76
Manuscript Number : GISRRJ19269
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

प्रियंका मौर्या, "नाट्यशास्त्र में दोष-विमर्श", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 2, Issue 6, pp.70-76, November-December.2019
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ19269

Article Preview