Manuscript Number : GISRRJ192711
संस्कृत काव्य का उद्भव एवं विकास
Authors(1) :-डॉ. छगन लाल महोलिया महाकाव्य सर्जन सम्बन्धी मानदण्डों के समालोचन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते है कि महाकाव्य विद्या साहित्य का एक विशिष्ट सृजित स्वरूप है जिसके सृजन की प्रवृत्ति एक दीर्घकालीन परम्परा के रूप में विद्यमान रही है। महाकाव्यों की सर्जनपरम्परा में प्राय: सर्जनकर्त्ताओं की प्रवृत्ति, पात्र, घटना, परिस्थिति एवं स्वानुभवमूलक अभिप्रायों को सरलतापूर्वक पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने की रही है। इसके कारण परम्परागत महाकाव्यों का प्रभाव पर्याप्त रूप मे 'समृद्धि को प्राप्त करता रहा है। वर्तमान में लोकभावना में हो रहे सामाजिक परिवर्तन के कारण महाकाव्यों के प्रति सामान्य जनमानस का रुझान न्यूनता की ओर बढ़ रहा है, अतः महाकाव्य के सर्जन में भी शिथिलता का समावेश दिखाई देता है । उसे वर्तमान युग के चिन्तनीय विषय के रूप में देखा जाना मेरी दृष्टि में सर्वाधिक उचित होगा ।
डॉ. छगन लाल महोलिया संस्कृत‚ काव्य, उद्भव, विकास, साहित्य ।
Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 6 | November-December 2019 Article Preview
सह आचार्य – संस्कृत, श्री रतनलाल कंवर लाल पाटनी , राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय, किशनगढ़, अजमेर।
Date of Publication : 2019-12-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 142-163
Manuscript Number : GISRRJ192711
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ192711