ऋग्वेद में धर्म का स्वरूप

Authors(1) :-डा0 प्रभात कुमार

धर्म शब्द की व्युत्पत्ति करते हुए कहा जा सकता है1 कि धर्म शब्द धृ धारणे धातु से बना है। यथा (प) ध्रियते लोकः अनेन अर्थात् धर्म वह है जिससे लोक को धारण किया जाय। (पप) धरति धारयति. वा लोकम् अर्थात् धर्म वह है जो संसार को धारण करता है। (पपप) धियते लोकयात्रानिर्वाहार्थं यः सः धर्मः अर्थात् धर्म वह है जिसे लोकयात्रा निर्वाहार्थ सभी धारण करें। अतः हम कह सकते हैं कि धर्म का तात्पर्य धारण करने से है। आर्यों के प्राचीनतम साहित्य ऋग्वेद में वैदिक युग की सभ्यता एवं संस्कृति का पूर्ण रूप उपलब्ध होता है। आर्यों का धर्म वैदिक धर्म कहलाता है वे वेदों को अपने धर्म का मूल मानते हैं। आज हिन्दुओं के धार्मिक स्वरूप में अनेक विभिन्नतायें हैं, कुछ ईश्वर के निराकार स्वरूप की उपासना करते हैं और कुछ उनका साकार रूप भी मानकर उसकी मूर्तियों की पूजा करते हैं, कुछ अनेक देवताओं को मानते हैं इसी को ‘बहुदेववाद‘ भी कहते हैं, कुछ एकेश्वरवादी हैं। जो उसमें इन्द्र, वरुण, अग्नि आदि विभिन्न दैवी शक्तियों की कल्पना करते हैं। ऋग्वेद का मुख्य धार्मिक रूप देवताओं की उपासना करना है। निरुक्तकार ने देवताओं को तीन भागों में बाँटा है2 पृथ्वी स्थानीय, अन्तरिक्षस्थानीय तथा धुस्थानीय। पृथ्वीस्थानीय में अग्नि, अन्तरिक्षस्थानीय में इन्द्र, तथा धुस्थानीय में सूर्य की गणना करते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य देवताओं की किस श्रेणी के प्रश्न में निरुक्तकार कहते हैं कि विभिन्न गुणों एवं कार्यों के कारण इन तीनों देवों की अनेक नामों से स्तुति की गयी है।

Authors and Affiliations

डा0 प्रभात कुमार
असिस्टेन्ट प्रोफेसर संस्कृत-विभाग नेहरू ग्राम भारती डीम्ड विश्वविद्यालय प्रयागराज।

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 6 | November-December 2019
Date of Publication : 2019-12-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 113-117
Manuscript Number : GISRRJ19277
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

डा0 प्रभात कुमार, "ऋग्वेद में धर्म का स्वरूप ", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 2, Issue 6, pp.113-117, November-December.2019
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ19277

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