Manuscript Number : GISRRJ19279
रामधारी सिंह दिनकर के काव्य में संगीत तत्व
Authors(1) :-डाॅ0 अनिल कुमार शर्मा ‘‘काव्य’’ और ‘‘संगीत’’ दोनों ही गतिशील कलाएं हैं, दोनों ही कणेन्द्रिय के माध्यम से आनन्द का संचार करती हैं। संगीत जिन भावनाओं की सूक्ष्म और निराकार अभिव्यक्ति करता है उनहीं को कविता साकार रूप प्रदान करती हैं। ‘‘कविता’’ जब तक गाई नहीं जाती है वह पूर्णरूपेण आनन्द नहीं दे पाती। ‘‘संगीत का उद्देश्य हमारी आत्मा को प्रभावित करना है। कवि दिनकर के काव्य में राष्ट्रवेदना, अभियान-गति जागरण गीत, प्रेरणा, गीत, क्रांति गीत, सांस्कृतिक गीत ही अधिक मिलते हैं। ‘‘काव्य-कला’’ की दृष्टि से भी ‘‘कुुरूक्षेत्र’’ क उच्च कोटि की काव्य-कृति है। कवि ने नाद-सौन्दर्य उत्पन्न करने के लिए अपने काव्य में स्वर विधान की ओर पर्याप्त ध्यान दिया है। स्वरों के संयोजक से उन्होंने अपने काव्य को इतना सरस एवं मधुर बनाने का प्रयास किया है कि मानव का हृदय आनन्द विभोर होकर बार-बार सुनने का आकांक्षा प्रकट करता है। सांगीतिक दृष्टि से दिनकर जी की काव्य-रचना ‘‘रसवंती’’ का अपना एक विशिष्ट स्थान है। ‘‘युग कवि दिनकर’’ जी ने सर्वत्र अपने ढंग का नाद-सौन्दर्य और संगीत का ध्यान रखा है। दिनकर कवि को अनेक वाद्ययंत्रों का ज्ञान भी था। कवि दिनकर ने अपने काव्य में गायन, वादन तथा नृत्य इन तीनों कलाओं का समावेश किया है। राष्ट्रकवि दिनकर जी की कृतियों में लोकचेतना, लोकमानस, लोक संस्कृति, लोक रीति आदि अनेक सांस्कृतिक तथ्य भरे पड़े हैं। आपकी वाणी में अदभ्य ओज, पौरूष की ध्वनि है, नव जीवन का स्पन्दन है, विरोध का गर्जन और भावी युग का दर्शन है।
डाॅ0 अनिल कुमार शर्मा काव्य, संगीत, ध्वनि, कविता, लय, कला। Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 6 | November-December 2019 Article Preview
एसोसिएट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, चै0 शिवनाथ सिंह शाण्डिल्य स्नातकोत्तर महाविद्यालय, माछरा, मेरठ, भारत।
Date of Publication : 2019-12-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 130-136
Manuscript Number : GISRRJ19279
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ19279