कालिदास का वात्सल्य विप्रलम्भ

Authors(1) :-उमेश चन्द्र मिश्र

महाकवि कालिदास ने अपने काव्यों के माध्यम से तत्कालीन पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक एवं राजनैतिक जीवन का परिदृश्य बड़े ही सजीव ढंग से प्रस्तुत किया है। अभिज्ञानशाकुन्तलम् के चतुर्थ अंक का यह श्लोक भाव, भाषा, नैसर्गिकता, प्रेम, प्रतिभा, कल्पनाशक्ति, वात्सल्यता एवं मार्मिकता के कारण साहित्य प्रेमियों को करुण रस से ओत-प्रोत कर देता है ।

Authors and Affiliations

उमेश चन्द्र मिश्र
प्रवक्ता(पी.जी.टी.)-संस्कृत, जे.बी.सी.+२ विद्यालय ,जामताड़ा, झारखंड, भारत

कालिदास‚ वात्सल्य‚ विप्रलम्भ‚ अभिज्ञानशाकुन्तलम्‚ संस्कृत।

  1. अभिज्ञानशाकुन्तलम् – डॉ.कपिल देव द्विवेदी
  2. संस्कृत साहित्य का इतिहास– वाचस्पति गैरोला
  3. अभिज्ञानशाकुन्तलम्– सुबोधचन्द्र पंत
  4. अभिज्ञानशाकुन्तलम्– सुबोधचन्द्र पंत
  5. रघुवंशम्– डॉ श्री कृष्णमणि त्रिपाठी
  6. मेघूदतम्– डॉ संसार चन्द्र‚ डॉ महोनदेव पंत
  7. संस्कृत साहित्य का इतिहास– डॉ.कपिल देव द्विवेदी
  8. मालविकाग्निमित्रम्–मोहनदेव पंत
  9. संस्कृत साहित्य का इतिहास– बलदेव उपाध्याय

Publication Details

Published in : Volume 3 | Issue 1 | January-February 2020
Date of Publication : 2020-02-29
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 28-30
Manuscript Number : GISRRJ203105
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

उमेश चन्द्र मिश्र, "कालिदास का वात्सल्य विप्रलम्भ", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 3, Issue 1, pp.28-30, January-February.2020
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ203105

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