Manuscript Number : GISRRJ203105
कालिदास का वात्सल्य विप्रलम्भ
Authors(1) :-उमेश चन्द्र मिश्र महाकवि कालिदास ने अपने काव्यों के माध्यम से तत्कालीन पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक एवं राजनैतिक जीवन का परिदृश्य बड़े ही सजीव ढंग से प्रस्तुत किया है। अभिज्ञानशाकुन्तलम् के चतुर्थ अंक का यह श्लोक भाव, भाषा, नैसर्गिकता, प्रेम, प्रतिभा, कल्पनाशक्ति, वात्सल्यता एवं मार्मिकता के कारण साहित्य प्रेमियों को करुण रस से ओत-प्रोत कर देता है ।
उमेश चन्द्र मिश्र कालिदास‚ वात्सल्य‚ विप्रलम्भ‚ अभिज्ञानशाकुन्तलम्‚ संस्कृत। Publication Details Published in : Volume 3 | Issue 1 | January-February 2020 Article Preview
प्रवक्ता(पी.जी.टी.)-संस्कृत, जे.बी.सी.+२ विद्यालय ,जामताड़ा, झारखंड, भारत
Date of Publication : 2020-02-29
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Page(s) : 28-30
Manuscript Number : GISRRJ203105
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ203105