आधुनिक रंगमंच में बदलते नाट्य प्रतिमान-संस्कृत के सन्दर्भ में

Authors(1) :-डाॅ0 (श्रीमती) मधु सत्यदेव

साहित्य की सम्पूर्ण विधाएँ मानव मन को उल्लसित करती हुई उसके मनोरंजन एवं उत्कर्ष में समान रूप से उपादेय हैं, किन्तु नाट्य में जीवन और समाज के विविध रूपों एवं भावों की यथार्थ एवं सजीव अभिव्यक्ति अन्य साहित्यिक विधाओं की अपेक्षा उत्कृष्ट होती हैं। आधुनिक नाटककार के रूपकों में संवाद एवं भाषा रंग मंच को सफल एवं प्रभावशाली बनाने में समर्थ है। नृत्य नाटिकाओं में विद्युत प्रकाश को गतिशील करके विभिन्न भावों को सरलता से सम्प्रेषित किया जाना भी सम्भव हो गया है। इस प्रकार नाटक केवल अभिनय नहीं साधना है, भोग नहीं योग है, प्रदर्शन नहीं अपितु ब्रह्मानन्द सहोदर है।

Authors and Affiliations

डाॅ0 (श्रीमती) मधु सत्यदेव
एसोसिएट प्रोफेसर,संस्कृत विभाग, दी0द0उ0 गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर,उŸार प्रदेश, भारत

आधुनिक, रंगमंच, नाट्य प्रतिमान, संस्कृत, साहित्य, नाटक,नाट्यशास्त्र।

1. दृश्यश्रव्यत्वभेदेनं पुनः काव्यं द्विघामतम्।
दृश्यं तत्राभिनेयम्, तद्रूपारोपात्तु रूपकम्।।
साहित्य दर्पण, 6/1
2. नाट्य निर्णय, पृ0 108
3. काव्य के रूप, पृ0 16
4. रंग दर्शन, पृ0 187
5. क-रूपयन्ते, अभिनीयन्ते इति रूपाणि नाटकादीनि।
नाट्य दर्पण, पृ0 23
ख-दशरूपकम् 1/7
6. ज्ीपे चीलेपबंस ंबजपवद पे ंइेवसनजमसल कमउंदकमक वद जीम ेजंहम ंदक पज ूपसस इम विनदक जींज जीवेम चसंले ूीपबी उवेज तिंदासल मउइतंबम जीम चीलेपबंस ंबजपवद ंतम सपामसल जव इम उवेज चवचनसंतण्
. ज्ीम ज्ीमवतल व िक्तंउंए च्ण् 72
7. मालविकाग्निमित्रम्, 1/4
8. नाट्यशास्त्रम् 1/11
9. अभिज्ञानशाकुन्तलम्, 1/7
10. अभ्ज्ञिानशाकुन्तलम्, 1/23, 4/4-5
11. रूप रूद्रीयम्, पृ0 8
12. प्रेक्षण सप्तकम्, 200, 21
13. दूर्वा, पृ0 32/4614
14. आक्रन्दनम्, पृ0 74
15. संस्कृत नाट्य वल्लरी भूमिका पृ0 45
16. संस्कृत नाट्य वल्लरी, पृ0 52-63
17. नाट्य सप्तपदम्, पृ0 27-71
18. नाट्य सप्तपदम् - 52-58
19. नाट्य सप्तपदम् - 108-117
20. प्रमद्वरा पृ0 6, 7, 4, 51
21. मृत्युरयं कस्तूरीमृगोऽस्ति - हर्षदेव माधव, पृ0-3
22. -तदैव-पृ0-19-25
23. कल्पवृक्षः पृ0 30, 31, 32
24. प्रेक्षण सप्तकम्, पृ0 48-51
25. प्रेक्षण सप्तकम्, पृ0 54-58
26. कालो¬ऽस्मि, पृ0-17 (हर्षदेव माधव)1. दृश्यश्रव्यत्वभेदेनं पुनः काव्यं द्विघामतम्।
दृश्यं तत्राभिनेयम्, तद्रूपारोपात्तु रूपकम्।।
साहित्य दर्पण, 6/1
2. नाट्य निर्णय, पृ0 108
3. काव्य के रूप, पृ0 16
4. रंग दर्शन, पृ0 187
5. क-रूपयन्ते, अभिनीयन्ते इति रूपाणि नाटकादीनि।
नाट्य दर्पण, पृ0 23
ख-दशरूपकम् 1/7
6. ज्ीपे चीलेपबंस ंबजपवद पे ंइेवसनजमसल कमउंदकमक वद जीम ेजंहम ंदक पज ूपसस इम विनदक जींज जीवेम चसंले ूीपबी उवेज तिंदासल मउइतंबम जीम चीलेपबंस ंबजपवद ंतम सपामसल जव इम उवेज चवचनसंतण्
. ज्ीम ज्ीमवतल व िक्तंउंए च्ण् 72
7. मालविकाग्निमित्रम्, 1/4
8. नाट्यशास्त्रम् 1/11
9. अभिज्ञानशाकुन्तलम्, 1/7
10. अभ्ज्ञिानशाकुन्तलम्, 1/23, 4/4-5
11. रूप रूद्रीयम्, पृ0 8
12. प्रेक्षण सप्तकम्, 200, 21
13. दूर्वा, पृ0 32/4614
14. आक्रन्दनम्, पृ0 74
15. संस्कृत नाट्य वल्लरी भूमिका पृ0 45
16. संस्कृत नाट्य वल्लरी, पृ0 52-63
17. नाट्य सप्तपदम्, पृ0 27-71
18. नाट्य सप्तपदम् - 52-58
19. नाट्य सप्तपदम् - 108-117
20. प्रमद्वरा पृ0 6, 7, 4, 51
21. मृत्युरयं कस्तूरीमृगोऽस्ति - हर्षदेव माधव, पृ0-3
22. -तदैव-पृ0-19-25
23. कल्पवृक्षः पृ0 30, 31, 32
24. प्रेक्षण सप्तकम्, पृ0 48-51
25. प्रेक्षण सप्तकम्, पृ0 54-58
26. कालो¬ऽस्मि, पृ0-17 (हर्षदेव माधव)

Publication Details

Published in : Volume 3 | Issue 1 | January-February 2020
Date of Publication : 2020-01-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 31-36
Manuscript Number : GISRRJ203106
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

डाॅ0 (श्रीमती) मधु सत्यदेव, "आधुनिक रंगमंच में बदलते नाट्य प्रतिमान-संस्कृत के सन्दर्भ में", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 3, Issue 1, pp.31-36, January-February.2020
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ203106

Article Preview