हिन्दी दलित आत्मकथाओं की विकास यात्रा

Authors(1) :-प्रसेन जीत सागर

हिन्दी साहित्य में दलित आत्मकथाएं दलितों, पिछड़ों और स्त्रियों के लिए लड़ने का साहस प्रदान करता है तथा साथ ही साथ अपने जीवन को सुन्दर बनाने का संदेश देता है। ये आत्मकथाएं भारतीय इतिहास का दस्तावेज है। इन आत्मकथाओं से दलित वर्ग अपने अधिकारों के प्रति संगठित और सचेत होता है। शिक्षा के प्रति जागृत एवं नवीन चेतना पैदा होती है। आत्मकथा विधा से हिन्दी साहित्य समृद्ध हुआ है।

Authors and Affiliations

प्रसेन जीत सागर
असिस्टेन्ट प्रोफेसर (हिन्दी विभाग), डाॅ0 राजेश्वर सेवाश्रम महाविद्यालय, ढिंढुई, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत।

हिन्दी, दलित, साहित्य, आत्मकथा, पिछड़, स्त्रिय, भारतीय, इतिहास।

  1. मोहनदास नैमिशराय, हिन्दी दलित साहित्य, साहित्य अकादमी रवीन्द्र भवन 35 नई दिल्ली, प्रथम संस्करण 2018 पृ0सं0 172
  2. जयप्रकाश कर्दम, नया मानदंड, (दलित आत्मकथा पर केन्द्रित अंक) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल शोध संस्था दुर्गा कुंड, वाराणसी, 2003 पृ0सं0 15
  3. मोहनदास नैमिशराय, हिन्दी दलित साहित्य, साहित्य अकादमी रवीन्द्र भवन 35 नई दिल्ली, प्रथम संस्करण 2018 पृ0सं0 201
  4. सुधीश पचैरी, कुछ उत्तर उपन्यास, कुछ उत्तर आधुनिक क्षण और कुछ उत्तर औपनिवेशिक पाठ, वर्तमान साहित्य, अंक-जनवरी-फरवरी, 2000 पृ0सं0 285-287
  5. राजेश पासवान, दलित आत्मकथाओं की जरूरत, हंस, अगस्त 2004, पृ0सं0 106
  6. मोहनदास नैमिशराय, अपने-अपने पिंजरे की भूमिका से डाॅ0 महीप सिंह, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली पृ0सं0 8

Publication Details

Published in : Volume 3 | Issue 1 | January-February 2020
Date of Publication : 2020-02-25
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 94-98
Manuscript Number : GISRRJ203323
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

प्रसेन जीत सागर, "हिन्दी दलित आत्मकथाओं की विकास यात्रा", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 3, Issue 1, pp.94-98, January-February.2020
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ203323

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