वेदव्यास की रचना में स्त्री विमर्श महाभारत के सन्दर्भ में (आज के संदर्भ में)

Authors(1) :-डॉ. रमेश चन्द्र टांक

भारतीय संस्कृति के प्राचीन ग्रन्थों में मनुष्य के आचार-विचार, व्यवहार का जैसा सूक्ष्म विवेचन हुआ है, अन्यत्र दुर्लभ है। रामायण और महाभारत इन दो ग्रन्थों में प्रारम्भ से लेकर अन्त तक कर्म का ही अन्तर्द्वन्द्व छाया हुआ है। केवल मुख्य कथा ही नहीं, उपकथाओं और आनुषङ्गिक वर्णनों में भी कर्म, अकर्म, विकर्म का वही द्वन्द्व तैरता हुआ नजर आता है। यथार्थ में कर्म की गहन गति का चित्रण एवं विश्लेषण महाभारत जैसे पञ्चम वेद में इतने मुखर और स्पष्ट रूप में हुआ है कि इस ग्रन्थ की तेजस्विता के सम्मुख अन्य ग्रन्थ फीके पड़ जाते हैं। महर्षि वेदव्यास की यह विशेषता रही है कि जिस विषय का भी उन्होंने स्पर्श किया है- वह चाहे कर्मफल हो, मृत्यु हो, शौच, इन्द्रियनिग्रह, सांसारिक-विषय, सुख-दुःख, पाप-पुण्य, जय-पराजय, अथवा मनुष्य का प्रारब्ध, कर्मों का प्रायश्चित अथवा हत्या और आत्महत्या का विषय ही क्यों न हो-उसे अन्तिम क्षितिज तक पहुँचा दिया है। विषय की वे इतनी स्पष्ट और विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत करते हैं कि उस विषय में पुन: कुछ कहने की आवश्यकता शेष नहीं रह जाती है। महाभारत में वैद व्यास द्वारा महापुरूषों की भूमिका का वर्णन सम्यक रूप से किया गया है उदाहरणार्थ श्रीकृष्ण, भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, शल्य, कर्ण के साथ-साथ पांचों पांडवों एवं कौरवों की भूमिका का वर्णन भी महर्षि वेद व्यास ने महाभारत कालीन समाज में समयक रूप से किया था इसी क्रम में स्त्री पात्रों को अन्तर्गत गांधारी, कुन्ती, माद्री, सुभद्रा, भानुमति, द्रोपति इत्यादि स्त्री पात्रों की भूमिका का सम्यक विवेचन महर्षि वेद व्यास ने तत्कालीन समाज में किया था। इसी स्त्री विमर्श को महाभारत कालीन परिप्रेक्ष्य में दृष्टिगत रखते हुए आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुत शोध आलेख में स्त्री विमर्श को व्याख्यायित किया गया है।

Authors and Affiliations

डॉ. रमेश चन्द्र टांक
शोधार्थी, सीनियर रिसर्च फेलो, ICSSR संस्थान

महाभारत, वेद व्यास, स्त्री, पंचमवेद, लोककल्याण|

  1. महाभारत, प्रथम खण्ड, आदिपर्व. अध्याय 62, श्लोक 53, पृ. 210
  2. देवी भागवत, पहला स्कन्ध,
  3. उपाध्याय, बलदेव, संसा. का इतिहास, पृ. - 76-77
  4. महाभारत, आदिपर्व, अध्याय श्लोक 86
  5. महाभारत, शांतिपर्व, अध्याय 349, श्लोक 5
  6. सर्व शास्त्रार्थ तत्वज्ञ पराशरसुतं प्रभुम । ब्रह्मपुराणम, अध्याय 1, श्लोक 29
  7. पराशर सुतोव्यासः कृत्वा पौराणिकी कथाम। वायपुराणम, अध्याय 2 श्लोक 11
  8. पराशरसुतो व्यासं, कृष्णद्वैपायनोऽभवत्। कर्मपुराणम अध्याय 522, श्लोक 9
  9. पराशर्य महाभागम् यत्वं प्रच्छसिमामिह। देवीभागवत, अध्याय 1, श्लोक 41
  10. कृतस्वन्दनांश्चाहं कुतासन परिग्रहान्। विष्णु पुराण, अध्याय 2 श्लोक 101
  11. यच्दवः फलमेवेह जनुषों में कृतार्थता। वायु पुराण अध्याय 2 श्लोक 7
  12. एवमुक्तं पुरा विप्रा व्यासेनामित तेजसाः। पदम पूराण अध्याय श्लोक 1
  13. मेरूभंगे महारम्य व्यास सत्यवती सुतः। देवीभागवत, अध्याय श्लोक 11
  14. महाभारत, आदिपर्व, अध्याय 117, श्लोक 7
  15. सत्यवती दृष्टाम लब्धवा वरमनुत्तमम्। अध्याय 63, श्लोक 83-84
  16. देवी भागवत, अध्याय 1, श्लोक 23.28
  17. महाभारत, शांति पर्व, अध्याय 323, श्लोक 27
  18. महाभारत, आदिपर्व, अध्याय 1, श्लोक 104
  19. महाभारत, शांतिपर्व, अध्याय श्लोक 22
  20. तसोरूत्पादयापत्यं समथोह्यासि पुत्रक। महाभारत, आदिपर्व, अध्याय 104, श्लोक 38
  21. महाभारत, अध्याय 104, श्लोक 39-41, पृ. 378
  22. देवी भागवत पुराण 1/3/24-33
  23. ततः वा पदृमादाय कृत्वा बहुगुणां तदा। बवन्ध नेत्रे स्वे राजन् पतिव्रतपरायणा।। महाभारत, आदिपर्व अध्याय 109 श्लोक
  24. न्यूनमाचरित पाप मया पूर्वेषु जन्मासु।या पश्यामि हतान् पुत्रान् पौत्रान् भ्रातृथ्य माधव वही, स्त्रीपर्व अध्याय 16 श्लोक 60
  25. अंह तु तद विजनामि विजोतुं येन शक्यते। युधिष्ठर स्वयं राजस्तन्तिबोध जुषरव च ।।
  26. तस्याक्षसे कुशलो राजन्नादास्येदऽहम सशयम् । राज्य श्रिय च ता दीप्तां त्वदर्थ पुरुषर्षभ वही, सभापर्व 48, 17.21
  27. वही, आदिपर्व 110, 6-22
  28. सर्वेषामहिषी राजन् द्रौपदी नो भविष्यति।एवं प्रत्याहृत पूर्व मम मात्रा विशापते ।। वहीं, आदिपर्व 194 23
  29. गत्वा बूहि महाबाहो सर्वशंस्त्र भ्रता वरम् । अर्जुन पाण्डवं वीर द्रोपद्याः पदवी चर।।वही, उधोगपर्व 90, 30
  30. अभिमन्यु रिव प्रीता द्वारवत्यां रता भ्रशम । त्वामिवेषां सुभद्रा च प्रीत्या सर्वात्मना स्थितावही, वनपर्व 235, 12
  31. तैष्व प्रमोदन तथा करोति तथैव भूयश्च तथा सुभद्रा ।। वही, बनपर्व 183, 27 

Publication Details

Published in : Volume 5 | Issue 1 | January-February 2022
Date of Publication : 2022-02-07
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 25-35
Manuscript Number : GISRRJ203332
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

डॉ. रमेश चन्द्र टांक, "वेदव्यास की रचना में स्त्री विमर्श महाभारत के सन्दर्भ में (आज के संदर्भ में) ", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 5, Issue 1, pp.25-35, January-February.2022
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ203332

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