साम्प्रदायिकता के संर्दभ में ‘तमस’ का पुनर्विश्लेषण

Authors(1) :-श्रवण सरोज

सिनेमा को मनोरंजन का एक साधनमात्र माना जाता है लेकिन सिनेमा मनोरंजन का साधनमात्र ही नहीं हैं बल्कि इसे एक ऐसे दस्तावेज़ के रूप में देखा जा सकता है जो किसी देश की सामाजिक-राजनीतिक गतिविधियों को हम तक सुगमता से पहुंचाती है। सिनेमा के दो वर्ग हैं- मुख्यधारा की सिनेमा और समानांनतर सिनेमा जिसे यथार्थवादी सिनेमा भी कहते है। मुख्यधारा की सिनेमा दर्शकों को मनोरंजन परोसती हैं वही समानांनतर सिनेमा अपने दर्शकों को समाज के यथार्थों से रू-ब-रू कराती हैं और इनके दर्शक एक खास वर्ग के बुध्दिजीवी वर्ग होते हैं। गोविंद निहालानी इन्हीं यथार्थवादी फिल्मों के एक लोकप्रिय निर्माता है। इनकी फिल्मों की खासियत यह है कि इन्होंने अपनी फिल्मों के माध्यम से समाज के हिंसात्मक पहलुओं को बारीकी से दर्शाया है। उन्होंने बचपन में भारत विभाजन के दौरान हुये साम्प्रदायिक हिंसा को अपनी आँखों से देखा था और वे सब हिंसात्मक चित्र उनके मन-मस्तिष्क पर छाया हुआ था। यही कारण है उन्होंने भीष्म साहनी के उपन्यास ‘तमस’ पर फिल्म बनाने में रूचि दिखाई। फिल्म में उपन्यास की मूल संवेदना से कोई छेड़खानी नहीं की गई हैं। ‘तमस’ (1987) साम्प्रदायिकता पर आधारित फिल्म है। प्रस्तुत फिल्म में भारत विभाजन से पाँच दिन पूर्व से लेकर विभाजन के दिन तक की घटनाओं का चित्रण किया गया हैं। पंजाब के एक गांव की पृष्ठभूमि में घटनेवाली घटनाओं के जरिये सम्पूर्ण भारत में उस दौरान घटनेवाली घटनाओं का चित्र साकार हो उठा हैं। ब्रिटिशों और विविध राजनीतिज्ञों के षडयंत्रों के कारण भारतभूमि में साम्प्रदायिकता की भावनाओं का प्रसार हुआ था। उस साम्प्रदायिकता की आग ने लाखों गरीब लोगों के प्राण ले लिये, असंख्य लोग बेघर होकर शरणार्थी बने, देश का बंटवारा हो गया जिससे साम्प्रदायिकता की भावना हमेशा हमेशा के लिये लोगों के मन-मस्तिष्क में छा गई। मुसलमान नेताओं ने उस स्थिति का भरपूर फायदा उठाकर पाकिस्तान का निर्माण करने में सफल हुये और हिन्दू संगठन ने भारत को एक हिन्दूवादी राष्ट्र बनाने की शपथ ग्रहण कर ली। वही सिक्ख भी अपने हितों और अधिकारों की रक्षा के लिये अलगाववाद को अपना लिया था। सन् 1947 में भारत विभाजन के दौरान साम्प्रदायिकता की भावना ने किस तरह से विविध धर्मों के लोगों को आपस में एक-दूसरे के विरूध्द करके उनमें आपसी भय, संदेह, अविश्वास और हिंसा की भावनाओं को जन्म दिया हैं। इन्हीं सभी घटनाओं का य़थार्थ चित्रण गोविंद निहालानी ने प्रस्तुत फिल्म में किया हैं।

Authors and Affiliations

श्रवण सरोज
शोधार्थी (पी-एच.डी.) हिन्दी विभाग, जामिया मिल्लिया इसलामिया, नई दिल्ली, भारत

सांप्रदायिकता, तमस, भारतीय समाज, सिनेमा, पुनर्पाठ ।

  1. कथन, भूमंडलीकरण के दौर में भारतीय सिनेमा, वर्ष-33, अंक-1, जनवरी-मार्च 2012, संपादक-संज्ञा उपाध्याय, शब्द संधान प्रकाशन, दिल्ली, पृष्ठ-संख्या-92.
  2. भारतीय नया सिनेमा, सुरेंद्रनाथ तिवारी, अनामिका पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स प्रकाशन, संस्करण-1996, दिल्ली.
  3. भारत में सामाजिक समस्याएँ, प्रकाश नारायण नाटाणी, प्रज्ञा शर्मा, पृष्ठ संख्या-278.
  4. भारत में सामाजिक विघटन, डॉ संजीव महाजन, पृष्ठ-संख्या-308.
  5. साम्प्रदायिक दंगें और भारतीय पुलिस, विभूतिनारायण राय, पृष्ठ-संख्या-18.
  6. साम्प्रदायिक समस्या, कानपुर दंगा जाँच समिति की रिपोर्ट, अनुवादक-दिवाकर, पृष्ठ-भूमिका.
  7. फिल्म तमस से संवाद (1987), निर्माता-गोविंद निहालानी.
  8. भारत में सामाजिक समस्याएँ, प्रकाश नारायण नटाणी,प्रज्ञा शर्मा, पृष्ठ-संख्या-278.
  9. फिल्म तमस से संवाद (1987), निर्माता-गिवंद निहालानी.
  10. साम्प्रदायिक दंगें और भारतीय पुलिस, विभूतिनारायण राय, पृष्ठ-संख्या-12
  11. फिल्म तमस से संवाद, निर्माता-निर्देशक- गोविंद निहालानी।

Publication Details

Published in : Volume 5 | Issue 1 | January-February 2022
Date of Publication : 2022-02-07
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 111-116
Manuscript Number : GISRRJ203342
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

श्रवण सरोज, "साम्प्रदायिकता के संर्दभ में ‘तमस’ का पुनर्विश्लेषण ", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 5, Issue 1, pp.111-116, January-February.2022
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ203342

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