प्राचीन भारतीय इतिहास की ज्ञान परम्परा में पाण्डुलिपि – विज्ञान का स्वरुप और क्षेत्र

Authors(1) :-भॅवरलाल कुमावत

पाण्डुलिपिविज्ञान (Manuscriptology) यद्यपि आधुनिक शैक्षणिक विषयों (Tutorial Disciplines) में गिना जाता है । परन्तु सत्य तो यह है कि भारतवर्ष की प्राचीन प्रचलित विद्याओं में यह एक शास्त्र के रूप में प्रतिष्ठित रहा है । लिपिविज्ञान (Palaeography) शिलालेखविज्ञान (Epigraphy) पुरातत्त्व (Archeology) इतिहास एवं संस्कृति (History & Culture), ज्यौतिष (Astrology) साहित्यशास्त्र (Rhetoric or Poetics) पुस्तकालयविज्ञान (Library Science) शासकीय लेखविज्ञान (Diplomatics) तथा राजनीतिविज्ञान (Political Science) आदि पाण्डुलिपिविज्ञान के सहायक शास्त्र माने जाते हैं । पाण्डुलिपि पुस्तकालयों तथा आधुनिक संग्रहालयों (Museums) को भी पाण्डुलिपि विज्ञान का ही प्रायोगिक अंग माना जाता है । इसी प्रकार, विविध क्षेत्रों से जुड़े प्रमाणपत्रों एवं सनदों के संग्रहालय (Record rooms) भी पुराने हो जाने पर पाण्डुलिपियों के ही रूप में व्यवहृत होने लगते हैं ।

Authors and Affiliations

भॅवरलाल कुमावत
(राज्य स्तरीय पुरस्कृत शिक्षक) प्रधानाध्यापक मातु श्रीमती रुकमा भाई रणछोड़ सिह राजपुरोहित राजकीय बालिका प्राथमिक संस्कृत विद्यालय मोहराई, भारत।

  1. किन्तु लिपि - लेखन अपने आप में एक कला का रूप ले लेता है । फारस में इस कला का विशेष विकास हुआ है । वहाँ से भारत में भी इसका प्रभाव आया, और फारसी लिपि मे तो इस कला का चरमोत्कर्ष हुआ । -डॉ० सत्येन्द्र, पाण्डुलिपिविज्ञान (भूमिका)
  2. सविस्तर द्रष्टव्य - पाण्डुलिपिविज्ञान – डॉ0 सत्येन्द्र, राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर, द्वितीय संस्करण १ ९ ८ ९, पृ० १८३-१८९
  3. द्रष्टव्य - पाण्डुलिपिविज्ञान - डॉ. सत्येन्द्र, द्वितीय संस्करण, पृ० १८५
  4. खरोष्ठ विशुद्ध संस्कृत शब्द है । अत: कुछ विद्वानों के मतानुसार गधे के होंठ की तरह टेढ़ी - मेढ़ी होने के ही कारण इस लिपि को खरोष्ठी नाम दिया गया । इस नाम से इस लिपि का भारतीय होना सिद्ध है ।
  5. द्रष्टव्य – पाण्डुलिपिविज्ञान, पृ. १ ९६
  6. पेपीरस के सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण सूचना डॉ. सत्येन्द्र से साभार उद्धत –
  7. पेपायरस (पेपीरस) एक वरूं या सरकण्डे की जाति का पौधा होता है जो दलदली प्रदेश में बहुतायत से पैदा होता है । मिस्र में नीलनदी के किनारे व मुहाने पर इसकी खेती बहुत प्राचीन काल से होती थी । यह पौधा प्रायः ५-६ फीट ऊँचा होता है और इसके डण्ठल साढ़े चार से नौ - साढ़े नौ इश लम्बे होते हैं । इसकी छाल से पतली चित्तियाँ निकाल कर, लेई आदि से चिपका लेते थे तथा उसी से लिखने के लिये पत्र (कागज) बनाते थे । पहले इन पत्रों को दबाकर रखा जाता था, फिर अच्छी तरह सुखाया जाता था । सूख जाने पर हाथी दाँत या शंख से घोट कर उन्हें चिकना बनाया जाता था, फिर विविध आकारों में काट कर, लिखने के काम में लिया जाता था । इस तरह तैयार किये हुए लेखाधार लिप्यासन को योरोप वाले ' पेपायरस'कहते थे । इसी से अंग्रेजी पेपर शब्द बना है ।
  8. पेपायरस के लम्बे - लम्बे लिखे हुए खरड़े (Scrolls) मिस्र की कब्रों में बड़े - बड़े सन्दूकों में रखी लाशों के हाथों में या उनके शरीरों से लिपटे हुए मिलते हैं जो लगभग ईसा से २००० वर्ष तक पुराने हैं । इनके नष्ट न होने का कारण मिस्र की गरम और सूखी जलवायु है ।

Publication Details

Published in : Volume 5 | Issue 1 | January-February 2022
Date of Publication : 2022-02-07
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 128-142
Manuscript Number : GISRRJ203349
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

भॅवरलाल कुमावत, "प्राचीन भारतीय इतिहास की ज्ञान परम्परा में पाण्डुलिपि – विज्ञान का स्वरुप और क्षेत्र ", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 5, Issue 1, pp.128-142, January-February.2022
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ203349

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