Manuscript Number : GISRRJ20335
उपनिषदों में जीवन दर्शन
Authors(1) :-डाॅ. ऋतु शुक्ला ज्ञानराशि स्वरूप समस्त वेदों की सारभूत उपनिषद् संस्कृत वाङ्मय की अनुपम धरोहर है। स्वयं के अन्दर आत्मज्ञान, मानवीय मूल्य, ऐहिक, आमुष्मिक, लोककल्याणकारी तŸवांे का समावेश किए हुए ये उपनिषदें ज्ञानपुंज हैं जिनके परिशीलन एवं आत्मसातीकरण से मनुष्य संसार में रहकर निरासक्त भाव से कर्म करते हुए समस्त राग द्वेष तथा उससे उत्पन्न दुःख से दूर रहकर आत्मज्ञान प्राप्ति की पात्रता प्राप्त कर लेता है। उपनिषद् के अनुशीलन से संसार की कारणभूत अविद्या अथवा अज्ञान का नाश हो जाता है। इसी अविद्या के कारण ही वह ईश्वर सŸाा को समझने तथा अनुभूत करने में असमर्थ रहता है। प्रस्तुत शोध पत्र में विभिन्न उपनिषदों में वर्णित असंख्य दार्शनिक तŸवों का उद्घाटन करने का प्रयास किया गया है जिसको अपने जीवन में आत्मसात करने वाला मनुष्य स्वयं के लिए निःश्रेयस का मार्ग तो प्रशस्त करता ही है साथ ही मानव समाज के अभ्युदय में भी योगदान देता है।
डाॅ. ऋतु शुक्ला ब्रह्मविद्या, पुरुषार्थचतुष्ट्य, विदेहमुक्ति, मुमुक्षु, पंचतन्मात्राएँ, आत्मतŸव, निःश्रेयस, औपनिषदिक, परिष्करण।
Publication Details Published in : Volume 3 | Issue 3 | May-June 2020 Article Preview
असि0प्रो0(संस्कृत)ए राजकीय महाविद्यालय तिलहर, शाहजहाँपुर, उŸार प्रदेश, भारत।
Date of Publication : 2020-06-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 26-34
Manuscript Number : GISRRJ20335
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ20335