मीमांसा दर्शन में कर्मवाद एक अनुशीलन

Authors(1) :-इन्दल

मीमांसा दर्शन में कर्म का अनुष्ठान अभिष्ठ है, परित्याग नहीं। इसी कारण वैदिक दर्शन का प्र्राण तत्व मीमांसा दर्शन है। चूंकि कर्मकाण्ड की उपादेयता मीमांसा को मान्य है, अतः वह कर्म को ही ईश्वर मानता है।

Authors and Affiliations

इन्दल
पूर्व शोधच्छात्र, संस्कृत विभाग, बी0आर0डी0बी0डी0पी0जी0 काॅलेज, आश्रम बरहज देवरिया, उत्तर प्रदेश,भारत।

मीमांसा, दर्शन, कर्म, वैदिक, कर्मकाण्ड, ईश्वर, संस्कृत, आस्तिक, नास्तिक।

  1. भारतीय दर्शन, भाग-1, डाॅ0 राधा कृष्णन।
  2. भारतीय दर्शन की रूप-रेखा, प्रो0 हरेन्द्र प्रसाद सिन्हा।
  3. भारतीय दर्शन की रूप-रेखा, प्रो0 हरेन्द्र प्रसाद सिन्हा।
  4. भारतीय दर्शन, भाग-1, डाॅ0 राधा कृष्णन।
  5. भारतीय दर्शन, भाग-1, डाॅ0 राधा कृष्णन।
  6. भारतीय दर्शन की रूप-रेखा, प्रो0 हरेन्द्र प्रसाद सिन्हा।
  7. भारतीय दर्शन की रूप-रेखा प्रो0 हरेन्द्र प्रसाद सिन्हा।
  8. श्रीमद् भगवद्गीता, अध्याय-2-47।
  9. संस्कृत साहित्य का इतिहास, भोलानाथ तिवारी।
  10. संस्कृत साहित्य का इतिहास, हलधर मिश्र।
  11. मीमांसा परिभाषा-गांगाधर मिश्र मैथिल।

Publication Details

Published in : Volume 3 | Issue 5 | September-October 2020
Date of Publication : 2020-09-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 88-92
Manuscript Number : GISRRJ203519
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

इन्दल, "मीमांसा दर्शन में कर्मवाद एक अनुशीलन", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 3, Issue 5, pp.88-92, September-October.2020
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ203519

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