Manuscript Number : GISRRJ2035219
भागवत पुराण में प्रतिपादित समाज एवं संस्कृति
Authors(1) :-पंकज तिवारी भागवत के श्रवण करने से भक्ति के निष्प्राण ज्ञान-वैराग्य प्राण का ही संचार नहीं हुआ, प्रत्युत के पूर्ण यौवन को भी प्राप्त हो गये। भक्त का हृदय भगवान् के दर्शन के लिए उसी प्रकार छटपटाया करता है, जिस प्रकार पक्षियों के पंखरहित बच्चे माता के लिए भूख से व्याकुल बछड़े दूध के लिए तथा प्रिय के विरह में व्याकुल सुन्दरी अपने प्रियतम के लिए छटपटाती है-समस्त पुराणों में भागवत पुराण को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इस महाग्रन्थ में आदि मध्य और अन्त में वैराग्य उत्पन्न करने वाली कथायें हैं। इस महाग्रन्थ में भगवान् कृष्ण से सम्बन्धित अनेक लीलाओें की कथा है। समस्त पुराणों का पठन- पाठन करने के पश्चात् यदि भागवत पुराण का पठन पाठन नहीं किया जाता तो समस्त पुराणों के पाठ का कोई फल नहीं मिलता। भागवत काल में यज्ञों का भी बहुत महत्व था, अनेक पुराणों और भागवत में भी यज्ञ का अनुष्ठान, यज्ञशाला, यूप, पशु यज्ञीय पात्र, कुश, समिधा, आज्य, हविष, पुरोडाश, मन्त्र उच्चारण तथा यज्ञ पुरोहित का उल्लेख मिलता है।
पंकज तिवारी स्थूलभाव, महामोह, तामिस्त्र, अन्धतामिस्त्र, अन्धानुकरण, अभिनिवेश, वेदाध्ययन, पुनर्लेखन, समशीतोष्ण, विंध्याचल, उपजातियां।
Publication Details Published in : Volume 3 | Issue 5 | September-October 2020 Article Preview
शोध छात्र, संस्कृत विभाग, राजकीय महाविद्यालय झाँसी (सम्बद्ध बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय,झाँसी)
Date of Publication : 2020-10-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 137-142
Manuscript Number : GISRRJ2035219
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ2035219