आदर्श कृषि योजना में परम्परागत स्रोतों की प्रासंगिकता

Authors(1) :-डाॅ0 विमलेश मिश्र

वर्तमान समय में ऐसी कृषि पद्धति की आवश्यकता है जो हमारी पर्यावरण प्रणाली के अनुकूल हो जिससे हमारा पारिस्थितिकी सन्तुलन बना रहे। कृषि ऐसी होनी चाहिए जिसमें कम से कम पर्यावरणीय सन्तुलन बिगड़े। मानव स्वास्थ्य के अनुकूल एवं गुणवत्तापूर्ण हो। भारत में दीर्घकाल से परम्परा और अपने अनुभवों के आधार पर कृषक जैविक-कृषि व्यवहार में लाते रहे हैं। हरित क्रान्ति आरम्भ होने के बाद जैविक कृषि प्रणाली में लगातार कमी आई है। इस प्रणाली में एकल फसलों का प्रयोग बढ़ा। हरित क्रान्ति के आधारिक स्तम्भ रूप में उर्वरक एवं कीटनाशक प्रयुक्त होने लगे हैं। रासायनिक कीटनाशकों का 1960-61 में अत्यन्त कम प्रयोग होता था जो बदलकर अब लगभग 0.45 किग्रा प्रति हेक्टेयर हो गया। हरित क्रान्ति आरम्भ होने के समय कृषकों को रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग के लिए सहमत कराना पड़ता। अब कृषक और कृषि इनकी अभ्यस्त बन गई है। भारत यद्यपि रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के प्रयोग में कई देशों से पीछे है। तथापि कृषि उत्पादन के वृद्धि के सन्दर्भ में पृथक युक्ति की आवश्यकता हैं उपज वृद्धि, कीट नियंत्रण एवं सतत कृषि विकास के लिए जैविक कृषि की ओर अग्रसर होना आवश्यक है।

Authors and Affiliations

डाॅ0 विमलेश मिश्र
असिस्टेण्ट प्रोफेसर, अर्थशास्त्र विभाग, कृषक (पी0जी0) काॅलेज, मवाना, मेरठ, चैधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ, उत्तर प्रदेश।

आदर्श, कृषि, योजना, परम्परागत, स्रोत, प्रासंगिकता।

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Publication Details

Published in : Volume 3 | Issue 3 | May-June 2020
Date of Publication : 2020-06-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 133-138
Manuscript Number : GISRRJ203524
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

डाॅ0 विमलेश मिश्र, "आदर्श कृषि योजना में परम्परागत स्रोतों की प्रासंगिकता ", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 3, Issue 3, pp.133-138, May-June.2020
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ203524

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