Manuscript Number : GISRRJ2035282
समकालीन कहानी की वर्तमान दिशाएँ (विमर्श)
Authors(1) :-डाॅ0 अनिल कुमार शर्मा काव्य-रचना-प्रक्रिया भाषा के माध्यम से चलती है। हमारा समूचा जीवन व्यवहार ही भाषा के माध्यम से परिचालित होता है। रोजमर्रा की प्रचलित भाषा हमें विरासत में उपलब्ध होती है और इसी भाषा सामग्री को हम अपने अनुभव, विचार आदि को दूसरों तक संप्रेषित करने के लिए उपयोग में लाते हैं। लोक व्यवहार में प्रचलित विरासत में मिली इसी भाषा का प्रयोग कवि भी अपनी काव्य रचना में करता है। अपनी रचना प्रक्रिया के क्रम में कवि इस भाषा के विन्यास को किसी विशिष्ट संवेदना या अनूभूति की अभिव्यक्ति के लिए किंचित तोड़-फोड़ देता है। इस तोड़-फोड़ से भाषा के पद या पद-समूह किन्हीं विशिष्ट अर्थवक्ताओं से प्रदीप्त हो उठते हैं और उनमें सौंदर्य और रमणीयता उत्पन्न हो जाती है। कवि के लिए भाषा के रूप का नहीं उसके स्वरूप का महत्व होता है। किसी खास संवेदना की अभिव्यक्ति के लिए विशिष्ट-पद रचना द्वारा प्रचलित भाषा के स्वरूप में हुए परिर्वतन से उत्पन्न अर्थ और उस खास संवेदना का पाठकों तक संप्रेषण और समान उद्दीपन रचना प्रक्रिया का अनिवार्य अंग है। भारतीय काव्यशास्त्रियों ने कवि की अनुभूति को विशिष्ट पद-रचना द्वारा अभिव्यक्त करने के इस क्रम को मार्ग या रीति की संज्ञा दी है। पाश्चात्य् काव्य चिन्तन में इसे ही शैली (ैजलसम) की संज्ञा दी गयी है।
डाॅ0 अनिल कुमार शर्मा रीति, शैली, काव्यशास्त्र, विशिष्ट पद-रचना, वामन, मम्मट, राजेशखर, कुन्तक। Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 3 | May-June 2019 Article Preview
एसोसिएट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, चै0 शिवनाथ सिंह शाण्डिल्य स्नातकोत्तर महाविद्यालय, माछरा,मेरठ, उत्तर प्रदेश, भारत
Date of Publication : 2019-06-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 130-134
Manuscript Number : GISRRJ2035282
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ2035282