Manuscript Number : GISRRJ2035286
श्रीमद्भगवद्गीता के निष्काम कर्मयोग की उपादेयता
Authors(1) :-डाॅ. भारत भूषण द्विवेदी श्रीमद्भगवद्गीता में मोक्ष या मुक्ति की प्राप्ति हेतु ज्ञानमार्ग, भक्तिमार्ग और कर्ममार्ग का उपदेश दिया गया है। भारतीय दर्शन में मुक्ति केवल शरीर त्याग के पश्चात् ही नहीं मानी गयी है, शरीरधारण के साथ भी मुक्ति की संकल्पना का विधान है। इस जीवन के रहते मुक्ति जीवनमुक्ति तथा शरीरत्याग के पश्चात् मुक्ति विदेहमुक्ति कही गयी है। परन्तु शरीरधारण करते हुए भी मुक्ति कैसे संभव हो सकती है, इसके लिए भगवान श्रीकृष्ण ने ज्ञानमार्ग, भक्तिमार्ग तथा कर्ममार्ग का विस्तृत वर्णन किया है। यद्यपि मुक्ति हेतु तीनों मार्गों में कोई तात्त्विक विरोध नहीं है, फिर भी एक साधारण संसारी व्यक्ति के लिए कर्मयोग का मार्ग अपेक्षाकृत सरल और सुगम मार्ग के रूप में प्रस्तुत किया गया है। कर्मयोग को गीता में ‘निष्काम कर्मयोग’, ‘बुद्धियोग’ अथवा केवल ‘योग’ के नाम से भी कहा गया है। ‘योगः कर्मसु कौशलम्’ कर्मयोग का प्रसिद्ध वाक्य है। व्यक्ति जीवन धारण करने के साथ ही अपने सभी कत्र्तव्यों का निर्वहण करते हुए भी इस मार्ग पर चलकर परम् शान्ति का अनुभव करते हुए मुक्त हो सकता है। इस प्रकार निष्काम कर्मयोग का मार्ग व्यावहारिक दृष्टि से अधिकाधिक लोगों के लिए सुलभ मार्ग सिद्ध होता है। इस मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति जीवनमुक्ति की दशा में स्थित रहते हुए परम् आनन्द प्राप्त करता हुआ शरीर त्याग के बाद विदेहमुक्ति की अवस्था को प्राप्त हो जाता है तथा पूर्णतया जीवन मृत्यु के बन्धन से मुक्त हो जाता है।
डाॅ. भारत भूषण द्विवेदी निष्काम, कर्मयोग, श्रीमद्गवद्गीता मुक्ति ज्ञानमार्ग, भक्तिमार्ग। Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 3 | May-June 2019 Article Preview
एसोसिएट प्रोफेसर (संस्कृत), बुद्ध विद्यापीठ महाविद्यालय, सिद्धार्थनगर, उत्तर प्रदेश, भारत
Date of Publication : 2019-06-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 149-154
Manuscript Number : GISRRJ2035286
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ2035286