Manuscript Number : GISRRJ203530
गंगा यमुना दोआब क्षेत्र में संधृत फसलोत्पादन हेतु फसल साहचर्य : एक भौगोलिक, विश्लेषण
Authors(1) :-आर0 एस0 चन्देल भारत एक ग्राम्य-कृषि प्रधान देश है, जहाँ परम्परायें, सामाजिक रीति-रिवाज, धर्म, गरीबी, बेरोजगारी, कुपोषण आदि उसकी पहचान है। जब भारत स्वतन्त्र हुआ तो कृषि विकास निम्नतर स्तर पर था, अधिकांश जनसंख्या कृषि पर निर्भर थी किन्तु कुल कृषि उत्पादन कम होता था, क्यांकि प्रति एकड़ उत्पादन अन्य देशों की तुलना में बहुत कम था, जनसंख्या विस्फोट सबसे विकराल समस्या थी। इन समस्याओं के समाधान हेतु सन् 1950 में नियोजित विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाएं लागू की गयी, जिसमें कृषि विकास को एक महत्वपूर्ण अंग माना गया। विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के तहत वैज्ञानिक कृषि का विकास देश के समस्त कृषि क्षेत्रों पर एक समान नही हुआ, जिससे वैज्ञानिक एवं प्राविधिकी ज्ञान में सम्पन्न क्षेत्र विकसित तथा इनके अल्प प्रयोग वाले क्षेत्र अल्प विकसित क्षेत्रों के रुप में बट गये। विकसित क्षेत्रों में वैज्ञानिक कृषि का निरन्तर प्रचार-प्रसार होता गया, जिससे कृषि उत्पादन, कृषि विशिष्टीकरण एवं बाजारोन्मुख कृषि का विकास हुआ। विकसित क्षेत्रों में आधुनिक तकनीकी पर आधारित पूंजीवादी कृषि व्यवस्था विकसित हुयी। जबकि अन्य क्षेत्रों में अद्यतन जनसंख्या वृद्धि एवं अवैज्ञानिक तथा पारम्परिक कृषि के कारण कृषि विकास की गति मन्द रही। इन क्षेत्रों में कृषि उत्पादन जीवन निर्वाहक बनकर ही रह गयी। इस प्रकार देश के विभिन्न क्षेत्रों में कृषि व्यवसाय एवं स्तर में अत्यधिक विभिन्नता दृष्टिगोचर होती है। कुछ दशकां से अविकसित कृषि क्षेत्रों में वैज्ञानिक कृषि विकास का प्रयास अवश्य हो रहा है, परन्तु इन क्षेत्रों में उच्च उत्पादकता वाले बीजां, रासायनिक उर्वरकां व कीटनाशक दवाओं, उन्नत सिंचाई व्यवस्था, मशीनीकरण तथा अन्य उन्नत कृषि आगतों का विवेकपूर्ण उपयोग न होने के कारण जहाँ एक तरफ कृषि में वांछित लाभ प्राप्त नही हो रहा है। वहीं दूसरी तरफ इसके अविवेकपूर्ण उपयोग से विभिन्न प्रकार की कृषि पारिस्थितिकीय समस्यायें भी विकराल रुप धारण करती जा रही हैं, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में या तो कृषि उत्पादकता स्थिर होती जा रही है या तो कृषि उत्पादकता में गिरावट दृष्टिगोचर हो रहा है, जिसे देखते हुए कृषि वैज्ञानिकां ने फसल साहचर्य एवं फसल विविधीकरण को अपनाने जैसी नीति को प्रस्तावित किया है।
वर्षा की अनिश्चितता, सिंचाई साधनों की कमी तथा प्राचीन रुढ़िवादी कृषि पद्धति आदि के फलस्वरुप फसलों में भिन्नता व विविधता पायी जाती थी जिससे बहुसंख्य कृषक अपनी आवश्यकताओं के अनुरुप कुछ प्रमुख फसलों की खेती न करके एक से अधिक फसलों को उत्पादित करना पसन्द करते थे। वर्तमान समय में समतल मैदानी क्षेत्रों में जहाँ सघन जनसंख्या पायी जाती है, वहाँ खाद्यान्न उपादन करने हेतु फसलों की संख्या कम पायी जाती है वहीं कम वर्षा एवं कम उपजाऊ ऊबड़-खाबड़ क्षेत्रों में स्थानिक विशेषताओं के अनुरुप फसलों की संख्या अधिक हो जाती है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि फसलों के निर्धारण में जहाँ एक तरफ प्राकृतिक कारक यथा धरातलीय बनावट व प्रवाह प्रणाली, मृदा प्रकार व उर्वरा शक्ति का स्तर, वर्षा की मात्रा आदि अपनी अहम भूमिका निभाते हैं, वहीं सामाजिक-सांस्कृतिक कारकों यथा जनसंख्या, सिंचाई के साधनों की सघनता व सुलभता, परम्परायें, भोजन की आदतें, परिवहन सुविधाएं बाजार की समीपता, कृषि अवस्थापनात्मक तत्व आदि का भी स्पष्ट रुप से प्रभाव देखा जा सकता है। है। इसी सन्दर्भ को ध्यान में रखते हुए अध्ययन हेतु गंगा-यमुना दोआब क्षेत्र (जनपद फतेहपुर,उ0 प्र0 ) को चयनित किया गया है। प्रस्तुत अध्ययन का मुख्य उद्देश्य गंगा-यमुना दोआब क्षेत्र (जनपद फतेहपुर,उ0 प्र0 ) में संधृत फसलोंत्पादन हेतु फसल साहचर्य का मापन कर संधृत सुझाव प्रस्तुत करना है। वास्तव में किसी भी क्षेत्र में संधृत फसलोंत्पादन वहाँ पाये जाने वाले फसल साहचर्य एवं फसल गहनता पर निर्भर करता है।
आर0 एस0 चन्देल फसलोंत्पादन, परम्परागत फसलें, दोआब, मशीनीकरण, कृषि पारिस्थितिकीय, फसल साहचर्य, खसरा, जीन्सवार, कृषि अनुषंगीय व्यवसाय, विचलन विधि, क्रान्तिक मान।
Publication Details Published in : Volume 3 | Issue 3 | May-June 2020 Article Preview
एसोसिएट प्र्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, भूगोल विभाग,
कमला नेहरु स्नातकोत्तर महाविद्यालय तेजगाँव, रायबरेली, उ0 प्र0, भारत।
Date of Publication : 2020-06-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 169-186
Manuscript Number : GISRRJ203530
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ203530