भारतीय किसान और विस्थापन की समस्या

Authors(1) :-सुभ्रांसिस बारिक

आजादी के पहले से लेकर वर्तमान समय तक किसानों का विस्थापन जारी है। गाँव में साहूकारों, जमींदारों और धार्मिक पुरोहितों के शोषण का शिकार किसान मजदूर बनने को विवश होता था। वर्तमान समय में भूमंडलीकरण पूंजी और बाजार के प्रभाव ने इस समस्या को और अधिक जटिल बना दिया है। आज हजारों- लाखों एकड़ जमीन बिना खेती के खाली पड़ा है। जिस लोकतंत्र की सरकार का सबसे बड़ा उत्तरदायित्व यह होना चाहिए था कि वह किसानों, गरीबों और वंचितों के जीवन स्तर को और बेहतर बनाती, उसने उल्टा इनका जीवन और दूभर कर दिया। अमीर और गरीब की खाई इस कदर चौड़ी हो रही है कि एक मुट्ठी भात के अभाव में बच्चा दम तोड़ रहा है। भूख सहन न हो पाने से दो मुट्ठी चावल चुराकर लोगों के द्वारा जान से मारा जाता है। वहीं पूँजीपतियों का नाम दुनिया के अमीर लोगों की सूची में प्रमुखता से आ रहा है। किसानों से उनकी जमीने छीनकर उन्हें उनकी जमीनों से बेदखल किया जा रहा है।

Authors and Affiliations

सुभ्रांसिस बारिक
प्रवक्ता, हिन्दी विभाग‚ खैरियर (स्वायत्त) कालेज, नौपाड़ा, ओडिसा, भारत।

आजादी‚ भारतीय‚ किसान‚ विस्थापन‚ समस्या‚ वर्तमान‚ धार्मिक‚ शोषण‚ शिकार‚ मजदूर।

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Publication Details

Published in : Volume 3 | Issue 6 | November-December 2020
Date of Publication : 2020-12-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 60-65
Manuscript Number : GISRRJ203613
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

सुभ्रांसिस बारिक, "भारतीय किसान और विस्थापन की समस्या ", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 3, Issue 6, pp.60-65, November-December.2020
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ203613

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