Manuscript Number : GISRRJ2036711
अलङ्कार सम्प्रदाय का साम्प्रतिक स्वरूप
Authors(1) :-सन्दीप कुमार द्विवेदी संस्कृत काव्य शास्त्र में अलंकार सम्प्रदाय का महत्त्वपूर्ण स्थान है। आचार्य भामह, दण्डी आदि सशक्त आचार्यों ने अलंकार तत्त्व को सर्वोत्कृष्ट काव्य तत्त्व के रूप स्थापित किया। कालान्तर में रीति, वक्रोक्ति, ध्वनि, रस एवं औचित्य सम्बन्धी विचारों से अलंकार को गौण काव्य तत्त्व की श्रेणी परिगणित किया जाने लगा। पण्डितराज जगन्नाथ के उपरान्त आधुनिक काव्यशास्त्र के आचार्यों ने काव्य तत्त्वों पर अभिनव दृष्टि से विचार कर नूतन व्याख्या प्रस्तुत की। कतिपय आचार्यों ने अलंकार के महत्त्व को पुनः प्रतिष्ठित करने का प्रयास किया है। इसका प्रस्तुतीकरण प्रस्तुत शोध पत्र का वण्र्य विषय है।
सन्दीप कुमार द्विवेदी स्वातन्त्र्योत्तर, अलंकार, अलं ब्रह्म, भूषण, वारण, पर्याप्ति, अभिनवकाव्यालंकार सूत्र, काव्यालंकारकारिका। Publication Details Published in : Volume 3 | Issue 6 | November-December 2020 Article Preview
असिस्टेन्ट प्रोफेसर भारतीय महाविद्यालय फ़र्रुखाबाद
Date of Publication : 2020-12-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 189-197
Manuscript Number : GISRRJ2036711
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ2036711