Manuscript Number : GISRRJ213211
काव्यस्याऽऽत्माविमर्शः
Authors(1) :-इन्दलः निष्पक्षतया कथ्यते,तदा ध्वनिरेव काव्यस्यात्मा भवितुमर्हतीति निर्गलः पन्थाः। न केवलं कतिपयेषु काव्येष्वेव तस्य दर्शनमपितु सर्वेश्वपि तेषु तेषु लक्षणग्रन्थेष्ष्वन्वेषणानन्तरं ध्वनिरेव दृष्टिपथमवतरिष्यतीति अत्र न कापि विप्रतिपŸिा। अतः काव्यस्यात्मनि प्रश्ने समुत्थिते, डिण्डिमघोषेण एतदेव कथयितुं शक्यते यद् ध्वनिरेव काव्यस्यात्मा नान्यत्किञ्चिदिति।
इन्दलः काव्यम्, आत्मा, ध्वनिः, शास्त्रम्, लक्षणः। 1.काव्यशास्त्र पृ0 210 Publication Details Published in : Volume 4 | Issue 2 | March-April 2021 Article Preview
पूर्वशोधच्छात्रः संस्कृतविभागः, बी0आर0डी0बी0डी0पी0जी0काॅलेज, आश्रमबरहजदेवरिया, उत्तरप्रदेशः,भारतः।
2. गीतायाम्-2/23-24
3. काव्यशास्त्र पृ0 221
4. काव्यशास्त्र पृ0 240
5. ध्वन्यालोक 1/1
6. वक्रोक्तिजीवितम् 1/4
7. चन्द्रालोक 1/8
8. काव्यादर्श-1/41-42
9. काव्यालंकारसूत्र-1.2.6-8
10. काव्यशास्त्र पृ0 100
11. ध्वन्यालोक 1/13
12. ध्वन्यालोक 1/4
13. साहित्यदर्पण 1/3
14. ध्वन्यालोक,1/4उदाहरण
15. काव्यालंकार, 2/85
Date of Publication : 2021-04-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 86-90
Manuscript Number : GISRRJ213211
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ213211