Manuscript Number : GISRRJ21347
लिपियों का प्रयोग और संताली वर्णों में विविधता
Authors(1) :-डॉ. धनेश्वर मांझी रूप में संताली समृद्धशाली लोक एवं शिष्ट साहित्य की परम्परा के बावजूद संताली भाषा का मानक रूप निर्धारण नहीं हो सका है। इसलिए शब्द उच्चारण, शब्द प्रयोग तथा वाक्य सरचना में एकरूपता नहीं आ पायी है। हालांकि 22 दिसम्बर 2003 को भारतीय संविधान की आठवों अनुसूची के तहत इसे भाषा का दरजा प्रदान कर दिया गया है, परंतु संताली भाषा के मानकीकरण का सवाल अभी तक हल नहीं किया जा सका है। संताली भाषा पांच लिपियों देवनागरी, उडिया, बाला, रोमन के साथ उनके पास अपनी स्वयं की लिपि श्ओलचिकिश् है जो संताली भाषा के लिए ध्वनिमूलक दृष्टि से सटीक, आर्थिक रूप से स्वीकार्य, मनोवैज्ञानिक रूप से अनुकूल और आदिवासी विद्यार्थियों को प्रशिक्षित करने हेतु अपेक्षाकृत आसान है। इसका अपना स्वतंत्र व्याकरण एवं शॉर्टहैण्ड लिपि है तथा कम्प्यूटर टाइपिंग के लिए संताली का फॉन्ट विकसित कर लिया गया है संताली व्याकरण पर गैर संताल जिसमें विदेशी विद्वान भी शामिल हैं ने व्यापक कार्य किया है।
डॉ. धनेश्वर मांझी लिपि, संताली, वर्ण, साहित्य, भाषा, व्याकरण, ध्वनिमूलक। Publication Details Published in : Volume 3 | Issue 4 | July-August 2020 Article Preview
सहायक प्रोफेसर, संताली विभाग, भाषा भवन, विश्वभारती, शांतिनिकेतन, पश्चिम बंगाल।
Date of Publication : 2020-07-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 89-94
Manuscript Number : GISRRJ21347
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ21347