आश्रम-व्यवस्था: श्रीमद्भागवत महापुराण के आलोक में

Authors(1) :-डाॅ॰ उमा शर्मा

आधुनिक जीवन-शैली में जो विसंगतियाँ हैं और उनके कारण जो असफलताएँ दृष्टिगत हो रही हैं, उनका कारण आर्ष सिद्धान्तों की अवहेलना ही है। अतः मानव-समाज में शान्ति स्थापित करने के लिए हमें आश्रम-व्यवस्थागत नियमों का पूर्णतया पालन करना चाहिए, इससे सामाजिक एवं वैयक्तिक उत्कर्ष होता है, ऐसा मेरा अभिमत है।

Authors and Affiliations

डाॅ॰ उमा शर्मा
एसोसिएट प्रोफेसर, नानक चन्द ऐंग्लो संस्कृत काॅलेज़, मेरठ

आश्रम, व्यवस्था, श्रीमद्भागवत, महापुराण, स्मृति, उपनिषद्, धर्म, समाज।

. मनुस्मृति 2/20

 . मनुस्मृति 2/7

 . पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शतम्-यजुर्वेद, 36/14

 . भगवन् श्रोतुमिच्छामि नृणां धर्मंसनातनम्।

वर्णाश्रमाचारयुतं यत् पुमान् विन्दते परम्।। श्रीमद्भागवत 7/11/2

 . श्रीमद्भागवत 7/12/1

 . छन्दांस्यधीयीत गुरोराहूतश्चेत् सुयन्त्रितः।

उपक्रमेऽवसाने च चरणौ शिरसा नमेत्।।श्रीमद्भागवत 7/12/3

 . श्रीमद्भगवदगीता 4/39

 . ब्रह्मारम्भेऽवसाने च पादौ ग्राह्यौ गुरोः सदा।

संहृत्य हस्तावध्येयं स हि ब्रह्मा´्जलिः स्मृतः।। मनुस्मृति 2/71

 . सायं प्रातश्चरेद् भैक्षं गुरवे तन्निवेदयेत्।

भु´्जीत यद्यनुज्ञातो नो चेदुपवसेत् क्वचिद्।। श्रीमद्भागवत 7/12/5

 . वही 7/12/4

 . सुशीलो मितभुग् दक्षः श्रद्दधानो जितेन्द्रियः।

यावदर्थं व्यवहरेत् स्त्रीषु स्त्रीनिर्जितेषु च।।

वर्जयेत् प्रमदागाथाम्गृहस्थो बृहद्व्रतः।

इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्त्यपि यतेर्मनः।। श्रीमद्भागवत 7/12/6-9

 . मनु 2/215

 . उषित्वैव गुरुकुले द्विजोऽधीत्यावबुध्य च।

त्रयीं साङ्गोपनिषदं यावदर्थं यथाबलम्।। श्रीमद्भागवत 7/12/13

 . मनुस्मृति 2/178

 . विक्रमचरित 115

 . श्रीमद्भागवत 7/12/16

 . अनेन विधिना देहं साधयन्विजितेन्द्रियः।

ब्रह्मलोकमवाप्नोति न चेह जायते पुनः।। याज्ञवल्क्यस्मृति 2/49, 50

 . हलायुध कोश, पृष्ठ 280

 . वही

 . ऋग्वेद 10/85/36

 . यस्तेऽभ्यधायि समयः सकृदङ्गसङ्गो।

भूयाद् गरीयसि गुणः प्रसवः सतीनाम्।। श्रीमद्भागवत 3/23/10

 . बौधायन धर्मसूत्र 2/9/7

 . मनुस्मृति 3/70

 . गृहेष्ववस्थितो राजन्क्रियाः कुर्वन् गृहोचिताः।

वासुदेवार्पणं साक्षादुपासीत महामुनीन्।। श्रीमद्भागवत 7/14/2

 . यावद् भ्रियेत जठरं तावत् स्वत्वं हि देहिनाम्।

अधिकं योऽभिमन्येत स स्तेनो दण्डमर्हति।। वही 7/14/8

 . सिद्धैर्यज्ञावशिष्टार्थैः कल्पयेद् वृत्तिमात्मनः।

शेषे स्वत्वं त्यजन् प्राज्ञः पदवीं महतामियात्।। वही 7/14/14

 . नहि अग्निमुखोऽयं वै भगवान्सर्वयज्ञभुक्।

इज्येत हविषा राजन्यथा विप्रमुखे हुतैः।। वही 7/14/17

 . वही 7/14/33

 . पुरुषेप्वपि ...... पुनन्तः पादरजसा त्रिलोकीं दैवतं महत्।। वही 7/14/41-42

 . नैतादृशः परो मनोवाक्कायजस्य यः।। वही 7/15/8

 . वही 7/15/12.13

 . कृपया गुरौ भक्त्या पुरुषो हा´्जसा जयेत्।। वही 7/15/24.25

 . य एते पितृदेवानामयने वेदनिर्मिते। वही 7/15/56

 . भावाद्वैतं क्रियाद्वैतं द्रव्याद्वैतं तथात्मनः। वही 7/15/62

 . वही 7/12/17

 . वही 7/12/18

 . वही 7/12/19.20

 . मुनयो वातरशनाः पिशङ्गा वसते मला। ऋ॰ 10/136/2

 . चरेद् वने द्वादशाब्दानष्टौ वा चतुरो मुनिः।

द्वावेकं वा यथाबुद्धिर्न विपद्यते कृच्छृतः।। वही 7/12/22

 . यदाकल्पः स्वक्रियायां क्षितौ शेषं यथोद्भवम्।। वही 7/12/23-27

 . वही 7/12/31

 . कल्पस्त्वेवं परिव्रज्य देहमात्रावशेषितः।

ग्रामैकरात्रविधिनां निरपेक्षश्चरेन्महीम्।। वही 7/13/1

 . एक एव चरेद् भिक्षुरात्मारामोऽनपाश्रयः।

सर्वभूतसुहृच्छान्तो नारायणपरायणः।। वही 7/13/3

 . वही 7/13/4

 . वही 7/13/5

 . वही 7/13/6

 . वही 7/13/7-9

 . यदृच्छया लोकमिमं प्रापितःकर्मभिभ्र्रमन्।

स्वर्गापवर्गयोद्र्वारं तिरश्चां पुनरस्य च।। वही 7/13/24

 . सुखमस्यात्मनो रूपं सर्वेहोपरतिस्तनुः।

मनः सस्पर्शजान् दृष्ट्वा भोगान् स्वप्स्यामि संविशन्।। वही 7/13/26

 . वही 7/13/30-32

 . वही 7/13/33

Publication Details

Published in : Volume 4 | Issue 5 | September-October 2021
Date of Publication : 2021-09-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 30-37
Manuscript Number : GISRRJ21456
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

डाॅ॰ उमा शर्मा, "आश्रम-व्यवस्था: श्रीमद्भागवत महापुराण के आलोक में ", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 4, Issue 5, pp.30-37, September-October.2021
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ21456

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