Manuscript Number : GISRRJ21456
आश्रम-व्यवस्था: श्रीमद्भागवत महापुराण के आलोक में
Authors(1) :-डाॅ॰ उमा शर्मा आधुनिक जीवन-शैली में जो विसंगतियाँ हैं और उनके कारण जो असफलताएँ दृष्टिगत हो रही हैं, उनका कारण आर्ष सिद्धान्तों की अवहेलना ही है। अतः मानव-समाज में शान्ति स्थापित करने के लिए हमें आश्रम-व्यवस्थागत नियमों का पूर्णतया पालन करना चाहिए, इससे सामाजिक एवं वैयक्तिक उत्कर्ष होता है, ऐसा मेरा अभिमत है।
डाॅ॰ उमा शर्मा आश्रम, व्यवस्था, श्रीमद्भागवत, महापुराण, स्मृति, उपनिषद्, धर्म, समाज। . मनुस्मृति 2/20 . मनुस्मृति 2/7 . पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शतम्-यजुर्वेद, 36/14 . भगवन् श्रोतुमिच्छामि नृणां धर्मंसनातनम्। वर्णाश्रमाचारयुतं यत् पुमान् विन्दते परम्।। श्रीमद्भागवत 7/11/2 . श्रीमद्भागवत 7/12/1 . छन्दांस्यधीयीत गुरोराहूतश्चेत् सुयन्त्रितः। उपक्रमेऽवसाने च चरणौ शिरसा नमेत्।।श्रीमद्भागवत 7/12/3 . श्रीमद्भगवदगीता 4/39 . ब्रह्मारम्भेऽवसाने च पादौ ग्राह्यौ गुरोः सदा। संहृत्य हस्तावध्येयं स हि ब्रह्मा´्जलिः स्मृतः।। मनुस्मृति 2/71 . सायं प्रातश्चरेद् भैक्षं गुरवे तन्निवेदयेत्। भु´्जीत यद्यनुज्ञातो नो चेदुपवसेत् क्वचिद्।। श्रीमद्भागवत 7/12/5 . वही 7/12/4 . सुशीलो मितभुग् दक्षः श्रद्दधानो जितेन्द्रियः। यावदर्थं व्यवहरेत् स्त्रीषु स्त्रीनिर्जितेषु च।। वर्जयेत् प्रमदागाथाम्गृहस्थो बृहद्व्रतः। इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्त्यपि यतेर्मनः।। श्रीमद्भागवत 7/12/6-9 . मनु 2/215 . उषित्वैव गुरुकुले द्विजोऽधीत्यावबुध्य च। त्रयीं साङ्गोपनिषदं यावदर्थं यथाबलम्।। श्रीमद्भागवत 7/12/13 . मनुस्मृति 2/178 . विक्रमचरित 115 . श्रीमद्भागवत 7/12/16 . अनेन विधिना देहं साधयन्विजितेन्द्रियः। ब्रह्मलोकमवाप्नोति न चेह जायते पुनः।। याज्ञवल्क्यस्मृति 2/49, 50 . हलायुध कोश, पृष्ठ 280 . वही . ऋग्वेद 10/85/36 . यस्तेऽभ्यधायि समयः सकृदङ्गसङ्गो। भूयाद् गरीयसि गुणः प्रसवः सतीनाम्।। श्रीमद्भागवत 3/23/10 . बौधायन धर्मसूत्र 2/9/7 . मनुस्मृति 3/70 . गृहेष्ववस्थितो राजन्क्रियाः कुर्वन् गृहोचिताः। वासुदेवार्पणं साक्षादुपासीत महामुनीन्।। श्रीमद्भागवत 7/14/2 . यावद् भ्रियेत जठरं तावत् स्वत्वं हि देहिनाम्। अधिकं योऽभिमन्येत स स्तेनो दण्डमर्हति।। वही 7/14/8 . सिद्धैर्यज्ञावशिष्टार्थैः कल्पयेद् वृत्तिमात्मनः। शेषे स्वत्वं त्यजन् प्राज्ञः पदवीं महतामियात्।। वही 7/14/14 . नहि अग्निमुखोऽयं वै भगवान्सर्वयज्ञभुक्। इज्येत हविषा राजन्यथा विप्रमुखे हुतैः।। वही 7/14/17 . वही 7/14/33 . पुरुषेप्वपि ...... पुनन्तः पादरजसा त्रिलोकीं दैवतं महत्।। वही 7/14/41-42 . नैतादृशः परो मनोवाक्कायजस्य यः।। वही 7/15/8 . वही 7/15/12.13 . कृपया गुरौ भक्त्या पुरुषो हा´्जसा जयेत्।। वही 7/15/24.25 . य एते पितृदेवानामयने वेदनिर्मिते। वही 7/15/56 . भावाद्वैतं क्रियाद्वैतं द्रव्याद्वैतं तथात्मनः। वही 7/15/62 . वही 7/12/17 . वही 7/12/18 . वही 7/12/19.20 . मुनयो वातरशनाः पिशङ्गा वसते मला। ऋ॰ 10/136/2 . चरेद् वने द्वादशाब्दानष्टौ वा चतुरो मुनिः। द्वावेकं वा यथाबुद्धिर्न विपद्यते कृच्छृतः।। वही 7/12/22 . यदाकल्पः स्वक्रियायां क्षितौ शेषं यथोद्भवम्।। वही 7/12/23-27 . वही 7/12/31 . कल्पस्त्वेवं परिव्रज्य देहमात्रावशेषितः। ग्रामैकरात्रविधिनां निरपेक्षश्चरेन्महीम्।। वही 7/13/1 . एक एव चरेद् भिक्षुरात्मारामोऽनपाश्रयः। सर्वभूतसुहृच्छान्तो नारायणपरायणः।। वही 7/13/3 . वही 7/13/4 . वही 7/13/5 . वही 7/13/6 . वही 7/13/7-9 . यदृच्छया लोकमिमं प्रापितःकर्मभिभ्र्रमन्। स्वर्गापवर्गयोद्र्वारं तिरश्चां पुनरस्य च।। वही 7/13/24 . सुखमस्यात्मनो रूपं सर्वेहोपरतिस्तनुः। मनः सस्पर्शजान् दृष्ट्वा भोगान् स्वप्स्यामि संविशन्।। वही 7/13/26 . वही 7/13/30-32 . वही 7/13/33 Publication Details Published in : Volume 4 | Issue 5 | September-October 2021 Article Preview
एसोसिएट प्रोफेसर, नानक चन्द ऐंग्लो संस्कृत काॅलेज़, मेरठ
Date of Publication : 2021-09-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 30-37
Manuscript Number : GISRRJ21456
Publisher : Technoscience Academy
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