Manuscript Number : GISRRJ214572
भारत की प्राचीन शिक्षा प्रणाली
Authors(1) :-डॉ. आरती शर्मा
यूँ तो विश्व के सभी देशों में शिक्षा को महत्त्व दिया जाता रहा है, किन्तु भारत में जो प्राचीन शिक्षा-पद्धति है, उसने न केवल देश-प्रदेश में, वरन् सम्पूर्ण विश्व में एक अमिट छाप छोड़ी है। अंग्रेज विद्वान् एफ.ई.केई इस बात की पुष्टि में कहते हैं कि “भारत के शिक्षाशास्त्रियों ने ऐसी शिक्षा-पद्धति का विकास किया जो न केवल साम्राज्यों के ध्वंस हो जाने तथा समाज में परिवर्तनों के बाद भी जीवित रही, वरन् हजारों वर्षों तक उच्च ज्ञान की ज्योति को भी जलाए रखा। उनमें ऐसे अधिसंख्य महान् चिन्तक हुए हैं जिन्होंने केवल भारत की ज्ञान-परम्परा पर ही नहीं, वरन् समूचे विश्व के बौद्धिक जीवन पर अपना अमिट प्रभाव छोड़ा है।” इस शोध पत्र में भारत की प्राचीन शिक्षा प्रणाली, छात्र-जीवन, गुरु का महत्त्व, गुरु-शिष्य सम्बन्ध, गुरुकुल और वहाँ की शिक्षा प्रणाली के बारे में जानेंगे।
डॉ. आरती शर्मा
सहायकाचार्य (शिक्षापीठ), श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय (केन्द्रीय विश्वविद्यालय), नई दिल्ली।
भारत, प्राचीन, शिक्षा, गुरुकुल, चिन्तक, छात्र, अधिसंख्य।
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Publication Details
Published in : Volume 4 | Issue 5 | September-October 2021
Date of Publication : 2021-09-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 148-152
Manuscript Number : GISRRJ214572
Publisher : Technoscience Academy
ISSN : 2582-0095
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