सोमनाथदाशविरचितस्य वंशीविनोदस्य आध्यात्मिकपक्षविचारः

Authors(1) :-विलता वर्मन्

मनुष्य संपूर्ण इन्द्रियों के वश मेें करके आत्मतत्व की साधना में स्थित रहता है, उसकी बुद्वि स्थिर हो जाती है। गीता में यही बुद्वियोग है।

Authors and Affiliations

विलता वर्मन्
शोधच्छात्री, संस्कृतविभागः, हात्मागाँधीकेन्द्रियविश्वविद्यालयः

गीता, बुद्धियोग, इन्द्रिय, आत्मतत्व, परमात्मा, जीव।

  1. श्रीमद्भगवद्गीता जयदयाल गोयन्दका गीता प्रेस गोरखपुर
  2. संसारसागर का गीतादीपस्तंभ डा0 श्रीकृष्ण द0 देशमुख चैखम्भा संस्कृत भवन वाराणसी
  3. यथार्थगीता श्री परमहंस स्वामी अड़गड़ानन्द जी आश्रम ट्रस्ट
  4. श्रीमदभगवदगीता श्रीमच्छाड.करभाष्याऽऽनन्दागिरिव्याख्यायुता आचार्य केशवलाल वि0 शास्त्री चैखम्भा संस्कृत प्रतिष्ठान दिल्ली

Publication Details

Published in : Volume 4 | Issue 6 | November-December 2021
Date of Publication : 2021-12-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 23-28
Manuscript Number : GISRRJ214606
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

विलता वर्मन्, "सोमनाथदाशविरचितस्य वंशीविनोदस्य आध्यात्मिकपक्षविचारः ", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 4, Issue 6, pp.23-28, November-December.2021
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ214606

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